________________
अनेकान्त 58/3-4
सकता है। ये वसदियाँ गर्भगृह, सुखनासि, नवरङ्ग, मानस्तम्भ, मुखमण्डप आदि से युक्त होती थीं।
इन्हीं उपरोक्त वसदियों के निर्माण की गाथा ये अभिलेख कहते हैं। दण्डनायक मगरय्य ने कत्तले बस्ति अपनी माता पोचब्बे के लिए निर्माण करवाई थी।6 गन्धवारण वसदि में प्रतिष्ठापित शान्तीश्वर की पादपीठ पर उत्कीर्ण लेख के अनुसार शान्तलदेवी ने इस बस्दि का निर्माण कराया था तथा अभिषेकार्थ एक तालाब भी बनवाया था।48 इसी प्रकार भरतय्य ने भो एक तीर्थस्थान पर वसदि का निर्माण कराया, गोम्मटदेव की रङ्गशाला निर्मित कराई तथा दो सौ वसदियों का जीर्णोद्धार कराया। इसके अतिरिक्त समय-समय पर दानकर्ताओं ने परकोटे इत्यादि का निर्माण करवाया था।
(v) मन्दिर निर्माण भारतवर्ष में मन्दिर निर्माण की परम्परा अत्यन्त प्राचीन है। आलोच्य अभिलेखों में भी मन्दिर निर्माण के अनेकों उल्लेख प्राप्त होते हैं। राष्ट्रकुट नरेश मारसिंह ने अनेक राजाओ को परास्त किया तथा अनेक जिन मन्दिरों का निर्माण करवाकर अन्त में सल्लेखना व्रत का पालन कर बंकापुर में देहोत्सर्ग किया।50 अभिलेखों के अध्ययन से इतना तो ज्ञात हो ही जाता है कि मन्दिरों का निर्माण प्रायः वेल्गोल नगर में ही किया जाता था। क्योंकि यह नगर उस समय मे जैन धर्म का प्रमुख केन्द्र था। शासन वसदि में पार्श्वनाथ की पादपीठ पर उत्कीर्ण लेख के अनुसार चामुण्ड के पुत्र और अजितसेन मुनि के शिष्य जिनदेवण ने बेल्गोल नगर में जिन मन्दिर का निर्माण करवाया। दण्डनायक एच ने भी कोपड़, वेल्गोल आदि स्थानों पर अनेक जिन मन्दिरों का निर्माण करवाया।52 आचलदेवी ने पार्श्वनाथ का निर्माण भी बेल्गोल तीर्थ पर ही करवाया। मन्दिर निर्माण में जन-साधारण के अतिरिक्त राजा भी अपना पूर्ण सहयोग देते थे। गङ्ग नरेशों ने कल्लङ्गेरे में एक विशाल जिन मन्दिर व अन्य पाँच जिन मन्दिरों का निर्माण करवाया तथा बेल्गोल नगर में परकोटा, रङ्गशाला व दो आश्रमों सहित चतुर्विशति तीर्थकर मन्दिर का निर्माण करवाया। राजाओं के अतिरिक्त उनकी पत्नियों द्वारा करवाये