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अनेकान्त 58/3-4
संसार उन्हीं को पूजता है जो त्याग करते हैं। रामचन्द्र अपने त्याग और मर्यादाओं के कारण 'मर्यादा पुरूषोत्तम' कहलाये। रावण भी वीर, बली
और विद्वान था, किन्तु अपनी अनीति के कारण खलनायक कहलाया। कृष्ण ने कंस जैसी आसुरी शक्तियों को नष्ट किया इसलिए प्रतिष्ठा प्राप्त की। बाहुबली अपने उत्कृष्ट आदर्शों के कारण मानव से महामानव तथा अपनी दुर्धर तपश्चर्या के कारण महामानव से भगवान् के पद पर प्रतिष्ठित हो गए। उस समय के चक्रवर्ती सम्राट भरत ने भी उनका पूजन किया। स्वाभाविक है कि जैनों ने पूजनार्थ उनकी मूर्तियाँ स्थापित की।
भगवान् बाहुबली की यह अत्यंत मोहक विशाल, निश्चल, ध्यानस्थ, परम दिगम्बर प्रतिमा अहिंसा, सत्य, तप, वीतरागता का प्रतीक है। यह राग से विराग की यात्रा का दर्पण है। निवर्ति मूलक जैन परम्परा का स्तम्भ है। पूर्ण आत्म-नियंत्रण की द्योतक है। श्रद्धापूर्वक एकाग्रता से मूर्ति का अवलोकन चेतना का उर्ध्वारोहण करने में समर्थ है।
6 फरवरी 2006 को भगवान् बाहबली का 21वीं शताब्दी का प्रथम महामस्तकाभिषेक हो रहा है। भारत सरकार ने श्रवणबेलगोल को रेल यातायात से जोड़ने की घोषणा की है। इस घोषणा की उपयोगिता तभी सार्थक हो सकती है जबकि श्रवणबेलगोल देश के प्रमुख महानगरों से आने-जाने वाली मख्य रेलगाड़ियों से आरक्षण सुविधा सहित जोड़ा जा सके। आज पूरा विश्व एक वैश्विक ग्राम के रूप में परिवर्तित हो रहा है। इस मूर्ति में ऐसा करिश्मा है कि यदि इस नगर को राष्ट्रीय पर्यटक केन्द्र के रूप में विकसित किया जाए और यहाँ सीधी हवाई सेवायें अथवा बैंगलर से हेलिकोप्टर सेवायें प्रदान की जाएँ तो भारत अकल्पनीय विदेशी मुद्रा अर्जित कर सकता है। यदि उचित प्रक्रिया अपनाते हुए जैन समाज अथवा भारत सरकार, मूर्ति को विश्व के अद्भुत आश्चर्यों में सम्मलित कराने का प्रयास करे तो इसमें अवश्य सफलता प्राप्त होगी जो देश के लिए एक महान् उपलब्धि होगी। यह मूर्ति देश की अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर है। जैस पहले भी कहा जा चुका है, यह खुले आकाश में 1 हजार वर्षों से भी अधिक समय