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अनेकान्त-58/1-2
भाई 22वें जैनतीर्थकर अरिष्टनेमि थे। कृष्ण की ऐतिहासिक निर्विवाद है तब कोई कारण नहीं कि अरिष्टनेमि को भी एक ऐतिहासिक व्यक्ति न माना जाए? दूसरे, उनका स्वतन्त्र अस्तित्व वैदिक तथा हिन्दु पौराणिक साहित्य से भी सिद्ध है। जैसा कि ऊपर निर्देश किया जा चुका है वह काल उत्तरीभारत में वैदिक सभ्यता के चरमोत्कर्ष का था। यज्ञादि में ही नहीं, विवाहादि उत्सवों के अवसर खान पान के लिए भी विपुल पशुहिंसा होती थी। अपने विवाह के उपलक्ष में वैसी हिंसा का आयोजन देख ब्रह्मचारी कुमार नेमिनाथ को वैराग्य हो गया, जूनागढ़ (श्वसुरालय) के निकट विवाह का संकल्प त्याग घर छोड़ गिरनार पर्वत पर जाकर तपश्ररण करने लगे। केवलज्ञान प्राप्त कर जनता में अहिंसा धर्म का प्रचार किया, मध्यभारत एवं दक्षिणपथ में जैनधर्म का पुनरुद्धार किया। और उस प्रान्त में उस समय से जैनधर्म अस्खलित रूप में ईस्वी सन् की 6ठी 7वीं शताब्दी तक तो सारे ही दक्षिण में तथा कुछ एक प्रान्तों में 13वीं 14वीं शताब्दी तक प्रधानरूप से चलता रहा। इस प्रान्त (कच्छ) में कुछ काल तक तो जैनधर्म प्रधान यदुवंश का राज्य चला तदुपरान्त पार्श्वनाथ के समय पाटल (सिन्ध) के नागों का आधिपत्य हो गया। तदुपरान्त सिन्धु सौवीर के व्रात्य, तथा मालवे के मल्ल व्रात्यों का अधिकार रहा। मौर्य राजाओं ने अपनी विजयपताका उस प्रान्त तक पहुँचा दी थी। किन्तु मौर्यो के पश्चात् सिन्धु की ओर से आने वाले शक छत्रपों का यहाँ राज्य रहा। कुछ काल आन्ध्रों के आधीन यह देश रहा। अन्त में सोलंकियों के समय इसका विशेष उत्कर्ष हुआ। इस प्रान्त में महाभारत के समय से लगाकर 15वीं 16वीं शताब्दी ईस्वी तक जैनधर्म की प्रधानता बनी रही। अनेक जैन तीर्थ विपुल जैन पुरातत्व इस प्रान्त में हैं। अनेक विद्वान् दिगम्बर श्वेताम्बर जैनाचार्यों ने इस प्रान्त में विशाल जैन-साहित्य का निर्माण किया। आज भी वहाँ जैनों की संख्या पर्याप्त और उनकी समृद्धि सर्वाधिक है। ___ पाढ़ अर्थात् पांड्य सुदूर दक्षिण का प्रसिद्ध तामिल राज्य था। अति प्राचीनकाल से इस अनार्य राज्य की स्थिति थी, जैनधर्म की प्रवृत्ति भी इस राज्य में प्राचीनतम काल से चली आती थी। महावीर काल में यह राज्य समस्त तामिल प्रान्त में सर्वोपरि था, चेर, चोल, केरलपुत्र, सत्यपुत्र, आदि