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अनेकान्त 58/3-4
विद्यमान है, और उस पर लिपटी, अपने प्रीतम के रंग में रंग गई वे पाषाण लताएँ आज भी उस राग और वैराग्य के अपूर्व संघर्ष का इतिहास कह रही हैं।
कविवर मिश्रीलाल जी ने अपने खण्ड काव्य ‘गोम्मटेश्वर' में बाहुबली की प्रतिमा के अप्रतिम सौन्दर्य पर मुग्ध होकर लिखा है :
"प्रस्तर में इतना सौन्दर्य समा सकता है, प्राण प्राण पुलकित हों
पत्थर भी ऐसा क्या गा सकता है?13 वाहुबली के कामदेव जैसे सुन्दर रूप तथा सर्व-परिग्रह रहित कठोर तपस्या का बड़ा मार्मिक चित्रण कवि ने प्रस्तुत किया है।
“कामदेव सा रूप साधना वीतराग की दो विरुद्ध आयाम
एक तट पर ठहरे हैं। प्रतिमा उत्तरमुखी है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि बाहुबली की ये मूर्ति आंतरिक चक्षुओ से अपने पिता और तीर्थकर, आदि ब्रह्मा, महादेव शिवशंकर भगवान ऋषभदेव की निर्वाण स्थली कैलाश पर्वत की ओर निहार रही हो।
संसार के प्रतिष्ठित इतिहासविदो पुरातत्ववेत्ताओं, विद्वानों, कलाकारों व कलामर्मज्ञों सभी ने, जिन्हें भी मूर्ति के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ, एक ही स्वर से मूर्ति के अद्वितीय होने की अनुशंसा की है। कुछ विद्वानों के विचार नीचे दिये जा रहे हैं।
"Ius the biggest monolithic statue in the world-larger than any of the statues of Rameses in Egypt . . ."