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अनेकान्त/23 आहार के दोष-उदगम, उत्पादन, एषणा (अशन) संयोजना, प्रमाण, अंगार, धूम और कारण के भेद से आहार के मुख्य आठ दोष हैं, किन्तु इनमे से कुछ के अनेक उपभेद हैं। जैसे
(1) उद्गम दोष- मूलाचार में उद्गम दोष के सौलह भेद कहे हैं। वे भेद इस प्रकार हैं-औद्देशिक, अध्यधि, पूति, मिश्र, स्थापित, बलि, प्राभृत, प्रादुष्कार, क्रीत प्रामृष्य, परावर्त, अभिघट, उद-भिन्न, मलारोहण, आद्देद्य और अनिसृष्ट दोष ।।
1. औद्देशिक-श्रमणों के उद्देश्य से बनाये गये भोजनादि को औद्देशिक कहते हैं। अधःकर्म आदि के भेद से यह सौलह प्रकार का है। मूलाचार के अनुसार-देवता या पाखण्डी अथवा दोनों के लिए जो अन्न तैयार किया जाता है, वह औद्देशिक है। यह उद्देश्य, समोद्देश आदेश और समादेश के भेद चार प्रकार का है। ---उद्देशजो कोई भी आयेगा उन सभी को मैं दूंगा, इस उद्देश्य से बनाया गया भोजन उद्देश्य कहलाता है। समुद्देश -जो भी पाखण्डी लोग आयेंगे उन सभी को मैं भोजन कराऊँगा, इस उद्देश्य से बनाया गया भोजन समुद्देश कहलाता है। आदेश-जो कोई श्रमण अर्थात् आजीवक, तपसी, रक्तपट (बौद्धसाधु) परिव्राजक या छात्र आयेंगे उन सभी को मैं आहार दूँगा, इस प्रकार श्रमण के निमित्त से बनाया गया अन्न आदेश है। समादेश-जो कोई भी निर्ग्रन्थ दिगम्बर साधु आयेंगे उन सभी को मैं आहार दूँगा, इस प्रकार के उद्देश्य से बनाया गया आहार समादेश कहलाता है।
2. अध्यधि-मुनियों के दान के लिये अपने निमित्त पकते हुए भोजन में जल या चावल का मिला देना अध्यधि दोष का दूसरा नाम साधिक भी है।
3. पूतिकर्म-प्रासुक आहारादिक वस्तु सचित्तादि वस्तु से मिश्रित हो वह पूतिदोष है। अप्रासुक द्रव्य से मिश्रित प्रासुक द्रव्य भी पूतिकर्म दोष से युक्त है। यह चूल्हा, ओखली, कलछी, चम्मच और गन्ध के भेद से पाँच प्रकार का है। अनगार धर्मामृत में पूतिकर्म के दो प्रकार कहे हैं-अप्रासुक मिश्र और कल्पित।'
4. मिश्र-पाखण्डियों और गृहस्थों के साथ संयत मुनि को दिया हुआ सिद्ध अन्न मिश्र दोष युक्त है। 1. आधाकम्मुद्देसिय अज्झोवज्झेय पूदिमिससे य।
ठविदे बलि पाहुडिदे पादुक्कारे य कीदे य।। मू. आ. गा 422 पामिच्छे परियटटे अभिहडमुभिण्ण मालआरोहे।
अच्छिज्जे अणिसट्टे उग्गमदोसा दु सोलसिमे।। वही गा. 423 2. भ. आ. गा. 423 की वि. पृ. 327 3 मू. आ गा. 425 4. जावदिय उद्देसो पासडोत्ति य हवे समुद्देसो।
समणोत्ति य आदेसो णिग्गंथोत्ति।। मू. आ. 428 वृत्ति सहित 5. मू. आ. गा. 427. अ. धर्मा 5/8 6 अप्पासुएण मिस्स पासुयदव्वं तु पूदिकम्भ तु।
चुल्ली उक्खलिदब्बी भायणाम धत्ति पचविहं ।। मू. आ. गा. 428 7. अ. धर्मा. 5/9 8 पासंडेहि य सद्ध सागरेहिं य जदण्णुद्दिसिय।
दादुमिदि संजदाण सिद्ध मिस्स वियाणहि ।। मू. आ. गा. 429