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अनेकान्त/२९
द्रव्य रूप ध्येय - निर्मल बुद्धि पुरुष ध्यान करने योग्य वस्तु को ध्येय कहते है। अवस्तु ध्यान करने योग्य नहीं है। वह ध्येय वस्तु चेतन और अचेतन दो प्रकार की है। चेतन तो जीव है और अचेतन धर्मादिक पाँच द्रव्य है। ये सब द्रव्य (वस्तु) स्थिति, उत्पत्ति और विनाश लक्षण से युक्त है। सर्वथा नित्य वा सर्वथा अनित्य नही है। अर्थात् उत्पाद-व्यय-धौव्य सहित हैं तथा मूर्तिक अमूर्तिक भी है। पुद्गल मूर्तिक है, जीवादिक अमूर्तिक है। चैतन्य ध्येय एक तो शुद्ध ध्यान से नष्ट हुआ कर्म रूप आवरण जिसका ऐसा मुक्ति के वर सर्वज्ञ देव सकल अर्थात् देहसहित समस्त कल्याण के पूरक अरहंत भगवान् है ।१३ द्रव्य रूप ध्येय गुणपर्यायवान् होता है। यह द्रव्य नाम की वस्तु जो प्रतिक्षण स्थिति, उत्पत्ति और व्ययरूप है तथा अनादिनिधन है वह सब यथावस्थित रूप मे ध्येय है।१५
भावरूप ध्येय - ध्येय के सदृश्य ध्यान की पर्याय भाव ध्येय रूप से परिगृहीत है।१६
अन्य पदार्थ ध्येय चेतन और अचेतन पदार्थो का यथावस्थित रूप ध्येय - जो जीवादिक षद्रव्य चेतन-अचेतन लक्षण से लक्षित है, अविरोध रूप से उन यथार्थस्वरूप ही बुद्धिमान जनो द्वारा धर्मध्यान मे ध्येय होता है ।१७
सात तत्व व नौ पदार्थ ध्येय - मै अर्थात् जीव और मेरे अजीव, आस्रव, बन्ध, सवर, निर्जरा तथा कर्मो का क्षय होने रूप मोक्ष इस प्रकार ये सात तत्व या पुण्य पाप मिला देने से नौ पदार्थ ध्यान करने योग्य है।८
अनीहित वृत्ति से समस्त वस्तुएँ ध्येय – यह लोक ध्यान के आलम्बनो से भरा हुआ है। ध्यान मे मन लगाने वाला क्षपक मन से जिस-जिस वस्तु को देखता है, वह वस्तु ध्यान का आलम्बन होती है।५९
पञ्चपरमेष्ठी रूप ध्येय सिद्ध का स्वरूप ध्येय - शुद्ध ध्यान से नष्ट हुआ है कर्मरूप आवरण जिनका ऐसे मुक्ति के वर सर्वज्ञ देव सकल अर्थात् शरीर सहित तो अर्हत भगवान् है अर्थात् निष्कल सिद्ध भगवान् है।
अर्हत का स्वरूप ध्येय - घातिया कर्मो के नष्ट हो जाने से जो स्नातक अवस्था को प्राप्त हुए है और जो तेजोमय परम औदारिक शरीर को धारण किए हुए है ऐसे केवलज्ञानी अर्हत जिन ध्यान करने योग्य है।२१
पञ्चपरमेष्ठी का रूप ध्येय - आत्मा के ध्यान में भी वस्तुत पञ्चपरमेष्ठी ध्यान किए जाने योग्य है।