Book Title: Anekant 1997 Book 50 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 127
________________ अनेकान्त/८ कक-कक्कस (६२), सुक्क (८९.१२३). क्ख-चक्खु (१४). पच्चक्ख (१६७), च्छ-अच्छेय (१७७), मिच्छा (९१),ज्ज-कज्ज (३) पज्जतं (१८३), ज्झ-मज्झं (२६), सज्झाय (१५३), ट्ट-अट्ट (१२९, १८१), परियट्टण (३३), ट्ठ-अट्ठ (४७, ७२) उवट्ठिदो (९९), ड्ढ-उड्ढ (७६) बुड्ढो (७९), ण्ण-सण्णाणं (११,१२) सण्णा (५९),त्त-अत्ता (२६) भत्ती (१३४), त्थ-धम्मत्यी (१८४) इत्थि (५९), द्द-णिद्दडो (४३) णिद्दा (६. १८०), द्ध-लद्धी (१५६) सुद्ध (८, १७७), प्प-जप्प (९५) अप्पवसो (१४६), ब्भ-णिब्भयो (४३) अब्भुट्ठिदो (१५२), म्म-जम्म (४७), धम्मो (९), ल्ल-णिस्सल्लो (४४), अल्लिय (४७), व्व-दव्व (२०) णिव्विअप्पेण (१२१), स्स-हस्सं (१३१) हरिस्सठाणा (३९), ग्रह-तण्ह (६) जोण्ह ९१३९), म्ह-तम्हा (५४,९२) जम्हा (३६), ण्ड-कमण्डल (६४)। विभक्ति रूप पुलिग विभक्तिरूपो मे निम्नलिखित प्रयोग यहाँ उपलब्ध होते हैं- कर्ता एकवचन मे जीवो (१०, ३७) लोगो (१४७, १३८) बहुवचन में समणा (१४५) पुरिसा (५३)। कर्म एकवचन में जिण (१) जीव (४६), बहुवचन में जीवा (४८, ४९) सिद्धा (७२)। करण एक वचन जीवेण (९०) दोसेण (५७) बहुवचन में पज्जएहि (९) दुविहेहि (१९) जिणेहि (१३४) सम्प्रदान और सम्बन्ध एकवचन मे सवरे (१००) पदेसे (६५), बहुवचन मे तसेसु (१२६) थावरेसु)। स्त्रीलिग रूपो मे कर्ता एकवचन में छुहा (१८०) बाहा (१७९) पीडा (१७९) कर्म एकवचन मे माय (११५) किरिय (१२२,१५२)। करण एकवचन मे खमया (११५) सम्बन्ध बहुवचन मे पयडीण (१७६) अधिकरण एकवचन मे भावणाए (७६, ११४)। नपुसकलिंग के रूपो मे-कर्ता एकवचन मे णाण (१६०, १६१) दसण (१६२, १६३) बहुवचन में दव्वाणि (३४) रुदाणि (१८१) सेसाणि (३७)। कर्म एकवचन मे कम्म (१४६) आवास (१४७)। करण एकवचन में णाणेण (१६१) अपादान एकवचन मे कम्मादो (१११)। सम्बन्ध एकवचन मे कम्मस्स (१८), बहुवचन में तच्चाण (५, ५२) कम्माण (११७)। अधिकरण एकवचन

Loading...

Page Navigation
1 ... 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158