Book Title: Anekant 1997 Book 50 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 136
________________ अनेकान्त / १७ आचार्य समन्तभद्रस्वामी इस सप्तभंगी प्रकिया को पूर्ण रूप से स्पष्ट करने वाले प्रथम आचार्य है। हॉ, इनके पूर्णरूप से स्पष्ट करने वाले प्रथम आचार्य हैं। हाँ, इनके पूर्व सिया अत्थि दव्वं सिया णत्थि दव्व" आदि प्रकार स्याद्वाद और और सप्तभगी का कथन मात्र प्राप्त होता रहा है। जैसा कि आचार्य कुन्दकुन्द की गाथा स्पष्ट करती है सिय अत्थिणत्थि उहयं अव्वतव्वं पुणो य तत्तिदयं । दव्वं खु सत्तभंगं आदेसवसेण संभवदि । । - पच्चास्तिकाय १४ अर्थात् द्रव्य आदेशवशात् वस्तुत स्यात् अस्ति, स्यात् नास्ति, स्यात् अस्ति नास्ति, अवक्तव्य (स्यांत् अस्ति नास्ति अवक्तव्य, स्यात् अस्तिनास्ति अवक्तव्य ) इस प्रकार सप्तभगवाला पदार्थ होता है। इसप्रकार का उल्लेख अवश्य प्राप्त होता है किन्तु इसकी निश्चित व्याख्या नित्यैकान्त, अनित्यैकान्त, भावैकान्त, अभावैकान्त है द्वैतैकान्त, अद्वैतैकान्त, नित्यैकान्त, अनित्यैकान्त, अन्यतैकान्त - अनन्यतैकान्त, अपेक्षैकान्त-अनपेक्षैकान्त, हेत्वैकान्त - अहेत्वैकान्त, विज्ञानैकान्तबहिर क्षैकान्त, दैवैकान्त- पौरूषेयैकान्त, पापै कान्त - पुण्यैकान्त, बन्धकारणैकान्त, मोक्षकारणैकान्त जैसे एकान्तवादो की सम्यक् समीक्षा करते हुए उनमे सप्तभगी (सप्तकोटियों) की योजना द्वारा स्याद्वाद की प्रस्थापना करने वाले आचार्य समन्तभद्र ही हैं। उक्त अनेक एकान्तो मे सप्तभगी का प्रयोग तथा युक्ति के बल पर वस्तु को अनेकान्तात्मक सिद्ध करना वादीभ केसरी समन्तभद्रस्वामी की महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इन्होने प्रत्येक वस्तु मे सत्-असत्, उभय और अनुभय इन चार कोटियो को ही नही, अपितु सदवक्तव्य, असदवक्तव्य और सदसदवक्तव्य इन तीन कोटियो को मिलाकर सप्तमग को प्रस्थापित किया है। सप्तमंगी प्रक्रिया को विस्तार के साथ उदाहरण पूर्वक स्पष्ट करना ही अपेक्षित है। यथा एकस्मिन्नविरोधेन प्रमाण नयवाक्यतः । सदादि कल्पना या च सप्तभंगीति सा मता ।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158