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अनेकान्त/३४
मुद्रा में निर्मित प्रतिमाए सरक्षित है। प्रथम पद्मासन की ध्यानस्थ मुद्रा में निर्मित तीर्थकर प्रतिमा का सिर आंशिक रूप से खण्डित है, वक्ष पर श्रीवत्स प्रतीक का आलेखन है।
दूसरी पद्मासन की ध्यानस्थ मुद्रा मे शिल्पांकित तीर्थकर का सिर भग्न है। वक्ष स्थल पर श्रीवत्स प्रतीक का अकन आकर्षक है।
तीसरी पद्मासन की ध्यानस्थ मुद्रा मे बैठे हुए तीर्थकर के सिर पर कुन्तलित केशराशि व कर्ण चापो का आलेखन है। दोनो पार्श्व मे कायोत्सर्ग मुद्रा में जिन प्रतिमाओं को अंकन किया गया है।
चौथी पद्मासन की ध्यानस्थ मुद्रा मे बैठी हुई तीर्थकर प्रतिमा के सिर पर कुन्तलित केशराशि एवं वक्षस्थल पर श्रीवत्स प्रतीक चिन्ह का आलेखन है। दोनों पार्श्व मे एक-एक कायोत्सर्ग मुद्रा मे जिन प्रतिमा अंकित है। वितान में एक अन्य प्रतिमा शिल्पांकन है।
कायोत्सर्ग मुद्रा में शिल्पाकित तीर्थकर का पादपीठ एव पैर भग्न है। सिर पर कुन्तलित केशराशि है। वक्षस्थल पर श्रीवत्स का प्रतीक का आलेखन है। बाए पार्श्व में चामरधारी एवं एक अन्य प्रतिमा का अकन है। मुखमुद्रा सौम्य है।
अम्बिका
सग्रहालय मे बाईसवे तीर्थंकर नेमिनाथ की शासन देवी आम्रादेवी अपर नाम अम्बिका की दो प्रतिमाएं सरक्षित हैं। प्रथम मूर्ति में देवी अम्बिका का कमर से नीचे का भाग भग्न है। देवी का दाया हाथ भग्न है। बायां हाथ आशिक रूप से सुरक्षित है, जिससे अपने कनिष्ठ बेटे प्रियकर को सम्हाले हुए है जो उनकी गोद मे बैठा है। देवी के ऊपर सर्पफण नागमौलि एव आम्र वृक्ष है। आम्र वृक्ष के मध्य में बाईसवे तीर्थकर नेमिनाथ की छोटी सी पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। अम्बिका का मुस्कान भरा चेहरा आकर्षक और