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अनेकान्त/७
इ- इत्यि (५९), उ– उदयठाणा (४०),उवओगों (१०)। ए-एक्कों (१५७), एगो (१०२)। ओ- ओही (१२), ओदइय (४१)। आ-आदा (१८), आयासं (९)।ई-ईहापुव्वं (१७५), ईसाभावेण (१८६) ऊ-दीर्घ-स्वर से प्ररम्भ होने वाला कोई शब्द नियमसार में नहीं मिला है। ऊ-स्वर का मध्य एवं अन्त्य प्रयोग उपलब्ध है। यथा-हेऊ (२५) णमिऊण (1) व्यंजन-प्रयोग
ग्रन्थ मे क, ख, ग, घ, च, छ, ज, झ, ट, ठ, ड, ढ, ण, त, थ, द, ध, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व, स और 'ह, इन व्यजन वर्णों का प्रयोग मिलता है। इनके उदाहरण निम्न प्रकार है:
क-कज्ज (३) कक्कस (६२)।ख-खइय (४१), खमया (११५) ग-गमण (१८४), गहण (५४) घ-घणघाइ (७१) च-चउ (२३), चक्खु (५१)। छ-छद्दव्वाणि (३४), छप्पयारा (२०)। ज-जणणं (१७९). जप्पं (९५)। झाणं (८९), झायदि (८३.८९)। ठ-ठाण (१७५) ठिदा (९२)। ण–णयरे (५८), णाणा (१५६)। त-तच्चं (५०), तण्ह (६)। थ-थावरेसु (१२६), थी (४५)। द-दप्पो (७३), दव्व (२०)। ध-धम्मो (९), धम्मत्थी (१८४)। प-पच्चक्खं (१६७), पज्जतं (१८३) फ-फलं (१५७), फासं (२७)।ब-बहुणा (११७), बहिरप्पा (१४९)। भ-भत्ती (१३४), भयं (१३२)। म-मग्ग (१८६), मज्झ (२६)! य-य (९) र-रइ (६), रसो (२७)। ल-लक्खण (१०८), लोय (१६९)। व-वयण (३), ववदेसो (२९) स-सज्झाय (१५३), सण्णा (५९)। ह-हस्स (१३१), हरिस्सठाणा (३९) आदि । उपर्युक्त व्यंजनों में से ट, ड तथा ढ का प्रयोग शब्दारम्भ मे नही मिलता है। मध्य और अन्त में इनका प्रयोग उपलब्ध है। यथा-अट्ट (१२९), (१८१), णिदंडो (४३) पडिक्कमणं (८२, ९१) गूढे (६५), अगाढत्त (५२) आदि। संयुक्त-व्यंजन प्रयोग ___ यहां २५ सयुक्त-व्यजनो का प्रयोग हुआ है, जिन्हें निम्नलिखित उदाहरणों मे देखा जा सकता है