Book Title: Anekant 1997 Book 50 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 128
________________ अनेकान्त/९ में णाणे (१००) दंसणे (१००) चरित्ते (१००) चरिए (१५२) बहुवचन मे तच्चेसु (१३९) सुत्तेसु (८९) जप्पेसु (१५०) आदि । सर्वनाम रूप ___ सर्वनाम रूपों में कर्ता एकवचन में सो (७, २८) आदि २६ बार) जो (२८, ५७) जं (३, २५) जा (६९) तथा बहुवचन में ते (१५) जे (१५४) एवं एदे (३४, ४९) रूप मिलते है। कर्म एकवचन मे तं (३, ११, १३, २५), करण एकवचन मे जेण (४७) तेण (८, ८२)। अपादान एकवचन में जम्हा (३६, ८४) तम्हा (९२, ९३)। सम्बन्ध एकवचन मे जस्स (१२७, १२८) तस्स (२, ४) बहुवचन में एदेसि (४, १७) तेसि (७९, ८०) अधिकरण एकवचन मे तम्हि (९२), बहुवचन में तासु (५९) रूप मिलते हैं। निजवाचक सर्वनामो मे मए (१८७) मज्झ/मज्झ (१००, १०४) मे (९९, १००) रूप मिलते है। सर्व शब्द के सव्व (९७.१०३) सव्वे (४५, ४९) एव सव्वेसि (६०) रूप प्राप्त होते है। धातुरूप वर्तमान काल प्रथम पुरूष (उत्तमपुरूष) एक वचन मे करेमि (१०३) होमि (८१) परिवज्जामि (९) एव वोसरे (९९, १०३) रूप मिलते है। मध्यम पुस्ष एकवचन में इच्छसि (१४७) एवं मण्ण्से (१६१) रूप प्रयुक्त हुए हैं। अन्य पुरूष के एकवचन और बहुवचन दोनों के रूप पर्याप्त मात्रा मे उपलब्ध होते है। एकवचन में- उच्चइ (७, २९) कुणइ (९३, १४), कुणदि (८५,८६) कुव्वइ (१०६) जणेति (१२८) जाणइ (१६९) जाणदि (९७, १५९) जाणेइ (१७०) जुजदि (१३९) जुंजदे (१३७, १३८) झादि (१४६) झायइ (१२१) झायदि (८३, ८९) भावेइ (१११) भावइ (९१, ९४) विज्जदि (५४, १८२) विज्जदे (१७९) हवदि (४, ११३) हवेइ (५, २०) होइ (२, ४) होदि (१८, २१) आदि। अन्य रूपो मे ये दृष्टव्य हैं-णिवत्तदे (५९) की भॉति अन्तिम "द' लोप वाले गेण्हए (९७) चिंतए? (९७, ९७) एव पडिवज्जए (१०४) अन्य पुरूष बहुवचन में कहयंति (१४५) गच्छति । (१८४) णिदंति (१८६) परुवेति (२४) भणंति (१४१, १४६) सति (३, ४२) हवति (८, २४) होति (१९, ३३)।

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