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अनेकान्त/१२
(२५), चउण्णाणं (३३१ पांच के लिए "पंच' (७३) एव ''पचम' (६०)। छह के लिए "छ'- (२०, २१, ३४)। सात के लिए (सत्त" (१६)। आठ के लिए "अट्ठ" (४७, ७२, १७७) तथा चौदह के लिए "चउदह' (१७) शब्दो का प्रयोग किया गया है।
उपर्युक्त विवेचन से नियमसार की भाषा के सन्दर्भ मे निम्नलिखित निष्कर्ष सामने आते हैं
१ प्राकृत भाषाओं में उपलब्ध होने वाले वर्णो मे से नियमसार की भी
भाषा में ऊ, ट, ड एवं ढ वर्ण का प्रयोग शब्द के आरम्भ में नहीं हुआ है, किन्तु इनका अनादि प्रयोग उपलब्ध है।
२ पुलिंग शब्दरूपों में कर्ता एकवचन में- "ओ". बहुवचन मे "आ",
कर्म एकवचन में अनुस्वार (-), बहुवचन मे "आ", करण एकवचन मे "एण", बहुवचन में "एहि'' ''एहि", सम्प्रदान और सम्बन्ध एकवचन में "स्स", बहुवचन में "आणं' और 'आण", अपादान एकवचन मे "ओ" एव “दो-आदो", अधिकरण एकवचन में "ए", बहुवचन मे "एसु" विभक्ति चिन्ह पाये जाते है।
३ स्त्रीलिंग रूपों का प्रयोग अधिक नहीं हुआ है। कर्ता एकवचन मे
"आ-, कर्म एकवचन में दीर्घ स्वर हस्व हो जाता है तथा अनुस्वार (-) का प्रयोग मिलता है। करण एकवचन मे सस्कृत की भाँति "खमया" रूप है। सम्बन्ध बहुवचन में "इण' और अधिकरण एकवचन में "ए" चिन्ह मिलते हैं।
४. नपुंसक लिग में कर्ता एवं कर्म एकवचन मे अनुस्वार (-) तथा “बहुवचन में" आणि ''चिन्ह मिलते हैं। शेष पुलिंग रूपों की भांति ही हैं। यहां "त" लोप के प्रयोग भी अधिकरण एकवचन मे मिलतें है। यथा-चरित्ते (१००) वरिए (१५२)।
५ सर्वनाम रूपों में कर्ता बहुवचन मे "ए", अपादान एकवचन में म्हा",
सम्बन्ध में “एसि" अधिकरण एक वचन मे “म्हि", "ए", बहुवचन में