Book Title: Anekant 1997 Book 50 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 125
________________ अनेकान्त/६ नियमसार की भाषा का अध्ययन डा. ऋषभचन्द्र जैन ''फौजदार" आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थ आगमतुल्य माने जाते हैं। इसलिए उनके ग्रन्थो की भाषा को आर्ष प्राकृत कहा जा सकता है। विद्वानों ने कुन्दकुन्द की भाषा को "जैन शौरसेनी" नाम दिया था, जो बाद में सर्वमान्य हो गया। उपलब्ध प्राकृत भाषा के व्याकरण उनकी भाषा पर पूर्णत लागू नहीं होते, यह भी सर्वविदित है। प्राकृत-व्याकरण आचार्य कुन्दकुन्द से शताब्दियों बाद रचे गये, इसलिए उनकी भाषा को व्याकरण से अनुशासित करने का आग्रह भी नही होना चाहिए। भाषागत अनुसन्धान की दृष्टि से कुन्दकुन्द के ग्रन्थों के प्रामाणिक सस्करण उपलब्ध नहीं है, क्योंकि प्राय सभी सस्करणों मे अलग-अलग मूलपाठ देखा जा सकता है जो अनुसंधान मे अनेक समस्याएँ पैदा करता है। अत आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थों के मानक सस्करण तैयार होना नितान्त आवश्यक है। इसी उद्देश्य को ध्यान मे रखकर मैने देश के विभिन्न भागों से संकलित कन्नड़ एवं देवनागरी लिपि की महत्वपूर्ण प्रचीन पाण्डुलिपियो और प्रकाशित संस्करणो का उपयोग करते हुए नियमसार का समालोचनात्मक सम्पादन करके विशिष्ट संस्करण तैयार किया है, जो अब प्रकाशन की प्रतीक्षा कर रहा है। उसमें सम्पादित मूलपाठ के आधार पर नियमसार की भाषा का अध्ययन किया गया है, जिसे यहां प्रस्तुत किया जा रहा है स्वर-प्रयोग नियमसार में अइ,उ.ए, और ओ इन पाँच हस्व स्वरों एव आ ई,ऊ इन तीन दीर्घ स्वरों का प्रयोग मिलता है। उक्त स्वर ध्वनियों से प्रारम्भ होने वाले शब्द उदाहरण स्वरूप दस प्रकार है-- अ-अक्खय (१७७), अगध (४६)

Loading...

Page Navigation
1 ... 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158