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वर्ष ५०
किरण ४
अनेकान्त
वीर सेवा मंदिर, २९ दरियागंज, नई दिल्ली-२ अक्टूबर-दिसम्बर
वीनस २५२४ वि स २०५४
जीव ! तैं मूढ़पना कित पायो ?
सब जग स्वारथ को चाहत है, स्वारथ तोहि भायो । जीवमूढ़पना कित पायो ?
अशुचि, अचेत, दुष्ट तन माही कहा जान विरमायो । परम अतिन्द्री निज सुख हरकै विषय रोग लिपटायो ।। जीव ! तै मूढ़पना कित पायो ?
चेतन नाम भयो जड़ काहे, अपनो नाम गँवायो । तीन लोक को राज छांडिकै, भीख मांग न लजायो ।। जीव ! तै मूढ़पना कित पायो ?
मूढ़पना मिथ्या जब छूटै, तब तू सत कहायो । 'द्यानत' सुख अनन्त शिव बिलसो, यो सतगुरू बतायो ।। जीव! तैं मूढ़पना कित पायो ?
१९९७
- कविवर द्यानतराय