Book Title: Anekant 1997 Book 50 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 112
________________ अनेकान्त / ३१ आदि साधनो के द्वारा काम-क्रोध के वशीभूत कुदेवो का आदर से आराधन करते है । सासारिक सुख के चाहने वाले और दुष्ट आशा से पीड़ित तथा भोगो की पीड़ा सेवचित होकर वे नरक मे पड़ते है । ३४ वही बुद्धिमानो को ध्यान करने योग्य है और वही अनुष्ठान व चिन्तवन करने योग्य है, जो कि जीव और कर्मो के सम्बन्धो को दूर करने वाला ही हो, अर्थात् जिस कार्य से कर्मों से मोक्ष हो वही कार्य करना योग्य है । ३५ ध्यान के भेद ध्यान चार प्रकार का है - आर्त्त, रौद्र, धर्म्य, शुक्ल । आर्त्त ध्यान और रौद्र ध्यान ये दो अप्रशस्त है और धर्म्य तथा शुक्ल ये दो ध्यान प्रशस्त है । ३७ ज्ञानार्णव के अनुसार सक्षेप रूचि वालो ने ध्यान तीन प्रकार का माना है, क्योकि जीव का आशय तीन प्रकार का होता है उन तीनो मे प्रथम तो पुण्य रूप शुभ आशय और दूसरा उसका विपक्षी पाप रूप आशय और तीसरा शुद्धोपयोग नामक आशय है।८ पुण्य रूप आशय के वश से तथा शुद्धलेश्या के अवलम्बन से और वस्तु के यथार्थ स्वरूप के चिन्तवन से उत्पन्न हुआ ध्यान प्रशस्त कहलाता है। जीवो के पाप रूप आशय के वश से तथा मोह - मिथ्यात्व - कषाय और तत्वों के अयथार्थ विभ्रम से अप्रशस्त अर्थात् असमीचीन ध्यान होता है। रागदिक की सन्तान के क्षीण होने पर अन्तरग आत्मा के प्रसन्न होने से जो अपने स्वरूप का उपलभन अर्थात् प्राप्ति होती है वह शुद्ध ध्यान है । ३९ — ध्यान का समय उस ( ध्याता) के ध्यान करने के कोई नियत काल नही होता, क्योकि सर्वदा शुभ परिणामो का होना सम्भव है। इस विषय मे गाथा है काल भी वही योग्य है जिसमे उत्तम रीति से योग का समाधान प्राप्त होता हो। ध्यान करने वालो के लिए दिन रात्रि और बेला आदि रूप से नियम मे किसी प्रकार का नियमन नही किया जा सकता है। ज्ञानार्णव मे ध्यान के समय के विषय मे इस प्रकार कहा गया है कि हे आत्मन् । तेरे मन मे निश्चलता होते हुए, रागादि अविद्यारूप रोगो मे उपशमता होते हुए, इन्द्रियो के समूह के विषयो मे नही प्रवर्तते हुए, भ्रमोत्पादन करने वाले अज्ञानान्धकार के नष्ट होते हुए और आनन्द को विस्तारते हुए आत्मज्ञान के प्रगट होने पर ऐसा कौन सा दिन होगा जब तुझे वन मे चारो ओर से मृगादि पशु चित्रलिखित मूर्ति अथवा सूखे हुए वृक्ष के ठूठ के समान देखेगे। जिस समय तू ऐसी निश्चल मूर्ति मे ध्यानस्थ होगा, उसी समय धन्य होगा । १ - ध्यान का फल ज्ञानार्णव के अनुसार मनुष्य शुभ ध्यान के फल से उत्पन्न हुई स्वर्ग की लक्ष्मी को स्वर्ग मे भोगते है और क्रम से मोक्ष को प्राप्त होते है । ४२ दुर्ध्यान से जीवो की दुर्गति का कारणभूत अशुभकर्म होता है, जो कि बड़े कष्ट से भी कभी क्षय नही होता।” जीवो के शुद्धोपयोग ध्यान का फल समस्त दुखो से रहित,

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