Book Title: Anekant 1997 Book 50 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 113
________________ अनेकान्त/३२ स्वभाव से उत्पन्न और अविनाशी ज्ञान रूपी राज्य का पाना है अर्थात् शुद्धोपयोग से जीवो को केवल ज्ञान की प्राप्ति होती है।४ ध्यान का महत्व - जैसे रत्नो मे वजरत्न श्रेष्ठ, सुगन्धि पदार्थो मे गोशीर्ष चन्दन श्रेष्ठ है, मणियो मे वैडूर्यमणि उत्तम है वैसे ही ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप मे ध्यान ही सारभूत व सर्वोत्कृष्ट है।४५ जिस प्रकार पाषाण मे स्वर्ण और काष्ठ मे अग्नि बिना प्रयोजन के दिखाई नहीं देती उसी प्रकार ध्यान के बिना आत्मा दिखाई नहीं देती।६ निशि दिन घोर तपश्चरण भले करो, नित्य ही सम्पूर्ण शास्त्रो का अध्ययन भले करो परन्तु ध्यान के बिना सिद्धि नही।४७ अनेक प्रकार की विक्रिया रूप असार ध्यानमार्ग को अवलम्बन करने वाले क्रोधी के भी ऐसी शक्ति उत्पन्न हो जाती है कि जिसका देव भी चिन्तवन नही कर सकते। स्वभाव से ही अनन्त और जगत्प्रसिद्ध प्रभाव का धारक यह आत्मा यदि समाधि मे जोड़ा जाय तो समस्त जगत को अपने चरणो मे लीन कर लेता है (केवलज्ञान प्राप्त कर लेता है)।९ ध्याता - धवला मे कहा गया है कि उत्तम सहनन वाला, निसर्ग से बलशाली शूर तथा चौदह या नौ पूर्व का धारण करने वाला (व्यक्ति) ही ध्याता होता है। महापुराण के अनुसार आर्त व रौद्र ध्यानो से दूर, अशुभ लेश्याओ से रहित लेश्याओ की विशुद्धताओ से अवलम्बित, अप्रमत्त अवस्था की भावना भाने वाला बुद्धि के पार को प्राप्त, योगी, बुद्धि बलयुक्त, सूत्रार्थ अवलम्बी, धीरवीर, समस्त परिषहो को सहने वाला, ससार से भयभीत, वैराग्य भावनाये भाने वाला, वैराग्य के कारण भोगोपभोग की सामग्री को अतृप्ति से देखता हुआ, सम्यग्ज्ञान की भावना से मिथ्याज्ञान को नष्ट करने वाला, सम्यग्दर्शन से मिथ्याशल्य को दूर करने वाला मुनि ध्याता होता है।५१ ज्ञानार्णव मे मुमुक्षु, ससार से विरक्त, शान्तचित्त, मन को वश मे करने वाला, शरीर व आसन स्थिर, जितेन्द्रिय, सवरयुक्त चित्त, धीर ऐसे ध्याता की प्रशसा की गयी है।५२२ ध्याता न होने योग्य व्यक्ति - ज्ञानार्णव मे कहा गया है कि जिस यति के जो कर्म मे है, सो वचन मे नही है, वचन मे और ही कुछ है तथा जो वचन मे है सो चित्त मे नही है अर्थात् जो मायाचारी हो तथा मुनि होकर भी परिग्रहधारी हो ऐसे यति तथा मुनि के ध्यान को सिद्धि नहीं होती।५३ और जो मुनि इन्द्रियो का दास हो, उग्र परिषहे नही जीती हो, मन की चचलता नहीं छोड़ी हो, विरागता को प्राप्त नही हुआ हो, मिथ्यात्व रूपी व्याध से वचित किया गया हो, जिनका मोक्षमार्ग मे अनुराग नही है ऐसे साधुओ को ध्यान की प्राप्ति नही है।५४ क्वार्टर न० ॥ ४१/१६४ जजी कालोनी, बिजनौर-२४६७०१ (उ०प्र०)

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