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दिगम्बर-मुनि णिच्चेलपाणिपत्तं उवइट्ट परमजिणवरिंदेहि।
एक्को वि मोक्खमग्गो सेसा य अमग्गया सव्वे ।। -परमोत्कृष्ट श्री जिनेन्द्र भगवान ने वस्त्र रहित दिगम्बर मुद्रा और पाणिपात्र का जो उपदेश दिया है, वही एक मोक्ष का मार्ग है और अन्य सब अमार्ग है।
जह जायरूवसरिसो तिलतुसमित्तं ण गिहदि हत्तेसु।
जइ लेइ अप्पबहुयं तत्तो पुण जाइ णिग्गोदं।। -यथा जात बालक के समान नग्न मुद्रा के धारक मुनि अपने हाथ में तिल-तुष मात्र भी परिग्रह ग्रहण नहीं करते। यदि वे थोड़ा बहुत परिग्रह ग्रहण करते हैं तो निगोद जाते हैं।
जस्स परिग्गह गहणं अप्पं बहुयं च हवइ लिंगस्स।
सो गरहिउ जिणवयणे परिगहरहिओ निरायारो।। -जिस लिंग (वेष) में थोड़ा बहुत परिग्रह ग्रहण होता है वह निन्दनीय लिंग है। क्योंकि जिनागम में परिग्रह रहित को ही निर्दोष साधु माना गया है।
णवि सिज्झइ वत्यधरो जिणसासणे जइवि होइ तित्थयरो।
णग्गो विमोक्ख मग्गो सेसा उम्मग्गया सव्वे।। -जिनशासन में ऐसा कहा है कि वस्त्रधारी यदि तीर्थकर भी हो तो वह मोक्षप्राप्त नहीं कर सकता। एक नग्न वेष ही मोक्षमार्ग है, बाकी सब मिथ्यामार्ग
हैं।