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अनेकान्त/४
यहाँ उक्त गाथा का पूर्वार्ध यथावत् है, किन्तु उत्तरार्ध मे नियमसार के मग्गो मोक्खउवायो के स्थान पर मूलाचार मे “मग्गो खलु सम्मत्त” कहा गया है।
अइथूलथूल थूलं सुहुमं च सुहुमथूलं च। सुहमं अइसुहम इदि धरादिय होदि छड्भेयं।। नियमसार-२१
यह गाथा गोम्मटसार जीवकाण्ड मे शब्द परिवर्तन के साथ उपलब्ध होती है, किन्तु उसमे भाव साम्य पूर्ण रूप से पाया जाता है। वह गाथा मूलरूप मे इस प्रकार है
बादरबादर बादर बादरसुहमं च सुहमथूलं च। सुहम च सुहमसुहमं धरादियं होदि छड्भेयं।। गोम्मटसार जीवकाण्ड-६०३ समयावलिभेदेण दु दुवियप्पं अहव होइ तिवियप्पं। तीदो संखेज्जावलिहदसंठाणप्पमाणं तु।। नियमसार-३१
इस गाथा की तुलना गोम्मटसार जीवकाण्ड की निम्न गाथा से की जा सकती है। यहाँ उत्तरार्ध यथावत् है तथा भावसाम्य भी है। यथा
ववहारो पुण तिविहो तीदो वट्टतगो भविस्सो दु। तीदो सखेज्जावलि हद सिद्धाण परमाणुं तु।। गोम्मटसार जीवकाण्ड-५७८ पुग्गलदव्व मुत्तं मुत्तिविरहिया हवंति सेसाणि। चेदणभावो जीवो चेदणगुणवज्जिया सेसा।। नियमसार-३७
भावसाम्य की दृष्टि से उक्त गथा की तुलना पचास्तिकाय की निम्न गाथा से कीजिए--
आगासकालजीवा धम्माधम्मा य मुत्तिपरिहीणा। मुत्तं पोग्गदव्वं जीवो खलु चेदणो तेसु।। पचास्तिकाय की निम्न गाथा से कीजिएअरसमरूवमगंधं अव्वत्तं चेदणागुणसह। जाण अलिंगग्गहणं जीवमणिद्दिट्टसठाणं।। नियमसार-४६
यह गाथा कुन्दकुन्द के प्रवचनसार-२/८०, समयसार-४९ पचास्तिकाय-१२७, और भावपाहुड-६४ मे यथावत् रूप से उपलब्ध होती है।
गामे व णगरे वारणे वा पेच्छिऊण परवत्थु। जो मुचदि गहणभावं तिदियवदं होदि तस्सेव।। नियमसार-५८