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अनेकान्त/८
एगो मरदि य जीवो एगो य जीवदि सयं। एगस्स जादिमरणं एगो सिज्झदि णीरयो।। नियमसार-१०१ यह गाथा किचित् शब्द परिवर्तन के साथ मूलाचार मे देखिएएओ य मरइ जीवो एओ य उववज्जइ। एयस्य जाइमरण एओ सिज्झइ णीरओ।। मूलाचार-२/११ (४७) उक्त गाथा भाषागत परिवर्तन के साथ महापच्चक्खाण में इस प्रकार हैएक्को उप्पज्जए जीवो, एक्को चेव विवज्जई। एकस्स होइ मरणं एक्को सिज्झइ नीरओ।। महापच्चक्खाण-७/१४/१४५४ वीरभद्र के आउरपच्चक्खाण मे देखेएगो वच्चइ जीवो एगो चेवुववज्जई। एगस्स होइ मरण एगो सिज्झइ नीरओ।।
वीरभद्द/आउरपच्चक्रवाण-१६/२६/२८३८ चदावेज्झय मे भी देखिएएगो जीवो चयइ, एगो उववज्जए सकम्मेहिं। एगस्स होइ मरणं एगो सिज्झइ नीरओ।। चदावेज्इय-३/१६१/६४८
फुटनोट। उक्त गाथा भाषा एव शब्द परिवर्तन के साथ आउरपच्चक्खाण (२) मे उपलब्ध है, किन्तु भावसाम्य तो है ही। यथा--
एक्को जायइ जीवो मरई उप्पज्जए तहा एक्को। ससारे भमइ एक्को एक्को च्चिय पावई सिद्धिं ।।
आउरपच्चक्खाण (२)-१३/२९/२६०७ एगो मे सासदो अप्पा णाणदंसणलक्खणो। सेसा मे बाहिरा भावा सव्वे संजोगलक्खणा।। नियमसार-१०२ नियमसार की यह गाथा भावपाहुड, मूलाचार, महापच्चक्खाण, चदावेज्झय, आराहणापयरण, आउरपच्चक्खाण (१) तथा वीरभद्र के आउरपच्चक्खाण मे पायी जाती है। यथा
एगो मे सस्सदो अप्पा णाणदसणलक्खणो। सेसा मे बाहिरा भावा सव्वे संजोगलक्खणा।। भावगाड--५९