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अनेकान्त/२०
साथ मे उस पात्र मे चावल सुमन डालते जाते है। इस पात्र को आसिका नाम दिया है जिसका अर्थ है छोटा आसन । इसके पश्चात् ॐ ही श्री महावीर जिनेन्द्राय आदि यथोचित शब्दावली के बाद निर्वपामि इति स्वाहा' कह कर विभिन्न द्रव्य चढ़ाते है।
अब हमारे अराध्य न कही आते है, न जाते है, विशेषकर सिद्ध तो कदापि नही, फिर भी हम कल्पना करते है इस तरह कि मानो वे कोई ऐसे जीव या देव है जो बुलाए जा सकते है, बिठाए जा सकते है और मधुर सगीत के साथ या उसके बिना भी किया गया स्वागत सत्कार स्वीकार कर सकते है। यह प्रक्रिया, जान पड़ता है वैदिक-तात्रिक यज्ञो व पूजा का अहिसाकरण है। यज्ञ वेदी के स्थान पर हम एक थाली या अन्य पात्र का उपयोग करते है जिसमे द्रव्य क्षेपण करते है। यह प्रक्रिया मन्त्रोच्चार के साथ होती है और हमारे जी को अच्छी ही नही लगती अपितु एक प्रकार की विनय, पवित्रता, शक्ति, रहस्यमयता और इन्द्रियातीत भाव का सचार भी करती है।
उपर्युक्त आह्वानन, स्थापना, सन्निधिकरण व निर्वपण आदि के साथ पूजा की प्रक्रिया में हम प्रयोग करते है कुछ ये शब्द- (१) संवौषट् (२) ठः ठः ठः (३) वषट् (४) स्वस्ति (५) ॐ (६) ह्रीं (७) स्वाहा (८) आरती आदि ।
विद्वान बतलाते है कि ॐ ह्री श्री आदि शब्द बीजाक्षर है जो शाखा, शोभा, कल्याण या विजय के साधन है। परन्तु इससे आगे भी जिज्ञासा रहती है कि यह बीज क्या है और क्या है इनका अर्थ व प्रयोजन?
अमरकोष के अव्यय वर्ग, श्लोक ८ मे कुछ का अर्थ यो दिया गया हैस्वाहा देव हविर्दाने श्रौषट्, वौषट्, स्वधा अर्थात् स्वाहा, श्रौषट्, वौषट् वषट् और स्वधा ये पाच नाम हवि देने के समय प्रयुक्त होते है।
ऋग्वेद के मडल २ सूक्त ३६ की ऋचा (मत्र) १ इन्द्र के प्रति इस प्रकार हैतुभ्य हन्वानो वरिष्ट गा, अपो अधुक्षन्सीमविभिरद्रिभिर्नर:। पिबेन्द्र स्वाहा प्रहुत वषट् कृत, होत्रादा सोम प्रथमो य ई शिषे।। ग्रिफिथ के अनुसार इस मत्र का अर्थ है
Water and milk hath he indeed sent forth to thee. The men have drained him with the filters and the stones Drink, Indra, from the Hotar's bowl, first night is thine soma hallowed and poured with Vasat and Swaha