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अनेकान्त/२
मुनित्व विहीन मुनि?
मुज्झदि वा रज्जदि वा दुस्सदि वा दव्वमण्णमासेज्ज। जदि समणो अण्णाणी बज्मदि कम्मेहिं विविहेहिं।।
यदि साधु अन्य द्रव्य को पाकर मोह करता है अथवा राग करता है अथवा द्वेष करता है तो वह अज्ञानी है तथा विविधि कर्मो से बद्ध होता है।
दसणणाणुवदेसो सिस्सग्गहणं च पोसगं तेसि। चरिया हि सरागाणं जिणिद पूजोवदेसो य।।
दर्शन और ज्ञान का उपदेश देना, शिष्यो का सग्रह करना, उनका पोषण करना तथा जिनेन्द्र देव की पूजा का उपदेश देना यह सब सरागी मुनियो की प्रवृत्ति है।
परमाणुपमाणं वा मुच्छा देहादियेसु जस्स पुणो।
विज्जदि जदि सो सिद्धिं ण लहदि सव्वागमधरो वि।। जिसका शरीरादि पर पदार्थो मे परमण प्रमाण भी ममता भाव विद्यमान है वह समस्त आगम का धारक होते हुए भी सिद्धि को प्राप्त नहीं करता है।
आगमहीणो समणो णेवप्पाणं परं वियाणादि।
अविजाणतो अत्थे खवेदि कम्माणि किध भिक्खू।। आगम से हीन मुनि न आत्मा को जानता है और न आत्मा से भिन्न शरीरादि पर पदार्थो को . स्व-पर पदार्थों को नही जानने वाला भिक्षु कर्मो का क्षय कैसे कर सकता है?
-प्रवचन सार