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सुप्रीम कोर्ट ने श्वेताम्बरों की शिखरजी संबंधी याचिका खारिज की
जैनो के सबसे पवित्र तीर्थ श्री सम्मेद शिखर के मामले में पटना हाई कोर्ट की रांची बेच के फैसले के खिलाफ श्वेताम्बरो द्वारा दायर विशेष याचिका उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को खारिज कर दी। रांची बेच ने अपने निर्णय में बिहार सरकार को निर्देश दिया था कि वह श्री सम्मेद शिखर जी (पारसनाथ पर्वत) के प्रबंध के लिए दिगम्बर व श्वेताम्बर जैनो के पाच-पांच प्रतिनिधियो सहित एक सरकारी अधिकारी की अध्यक्षता मे सयुंक्त कमेटी गठित करे। श्वेताम्बरो ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट मे विशेष याचिका दायर की जिसे मान्य न्यायाधीश एम एम पंछी एव न्यायमूर्ति एम श्रीनिवासन ने अपीलकर्ताओ के वकील एफ नरीमन की लंबी दलीलों को सुनने के बाद खारिज कर दिया। दिगम्बरो की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सोली सोराबजी, आर के जैन, हरीश सालवे और डा डी के जैन ने पैखी की।
मान्य न्यायाधीश ने श्री नरीमन के इस तर्क को आधारहीन बताया कि रांची हाई कोर्ट ने अपने आदेश के जरिए श्वेताम्बरों को प्रबंध के अधिकार से वचित किया है । न्यायालय ने कहा हाई कोर्ट ने अपने निर्णय के जरिए यह दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है कि श्वेताम्बरो के हित बिहार भूमि सुधार कानून के अंतर्गत निहित हो जाने के बाद दोनो ही सम्प्रदायो का पारसनाथ पर्वत पर बराबर का अधिकार है । अत इस अदालत की नजर में ऐसा कोई कारण नही है कि हाई कोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप किया जाए।
स्मरणीय है कि राची बेच के मान्य न्यायाधीश पी के देव ने श्वेताम्बरो द्वारा दायर प्रथम याचिका को खारिज करते हुए इस बात को एकदम असत्य बताया था कि सेठ आनदजी कल्याणजी पारसनाथ पर्वत के मालिक हैं। उन्होने आगे कहा था कि पवित्र चरणो व तीर्थ पर श्वेताम्बरो के एकाधिकार का दावा मान्य नहीं है और सुझाव दिया था कि तीर्थ का विकास कर पूजा-अर्चना करने वालों तथा यात्रियो को समुचित सुविधाए प्रदान की जाए तथा विवाद को खत्म करने के लिए दोनो- दिगम्बर व श्वेताम्बर सम्प्रदायो के प्रतिनिधयो की एक सयुक्त कमेटी बना दी जाय। हाई कोर्ट खंडपीठ ने श्री देव के फैसले की पुष्टि करते हुए बिहार सरकार को ऐसी कमेटी गठित करने का निर्देश दिया था। मान्य न्यायाधीशों ने यह भी कहा था कि दिगम्बर यात्रियों के लिए पर्वत पर एक धर्मशाला की अत्यत आवश्यकता है।
नवभारत टाइम्स के सौजन्य से