Book Title: Anekant 1997 Book 50 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 34
________________ अनेकान्त/31 से लेकर सूर्यास्त के तीन घड़ी पहले तक के मध्य में आहार का काल है। उस आहार के काल में तीन मुहूर्त तक भोजन करना जघन्य आचरण, दो मुहूर्त तक भोजन करना मध्यम आचरण तथा एक मुहूर्त तक भोजन करना उत्कृष्ट आचरण मुनि को केवल प्रकाश में ही भिक्षा ग्रहण करनी चाहिए, क्योंकि रात्रि-भोजन से त्रस और स्थावर जीवों का घात होताहै रात्रि में उनको देखना कठिन है। देने वाले के आने का मार्ग, अन्न रखने का स्थान, उच्छिष्ट भोजन के गिरने का स्थान, दिया जाने वाला आहार योग्य है अथवा नहीं। इन सबको नहीं देखा जा सकताहै। रात्रि त्याग से आठ प्रवचन माता के पालन में मलिनता आती है। रात्रि में आहार करने पर हिंसा आदि पाँच पापों की प्राप्ति अथवा यह शंका रहती है कि हिंसा आदि पाप तो नहीं हुए। इसके अतिरिक्त स्वयं भी ढूंठ, सर्प कण्टक, आदि से विपत्तियाँ आ सकती है। अतः मुनि को आहारार्थ रात्रि में कभी भी नहीं निकलना चाहिए। --कुंवर बालगोविन्द, बिजनौर। कलिकालविर्षे तपस्वी मृगवत् इधर उधर तैं भयवान होय वन ते नगर के समीप बसें हैं, यजु महा खेदकारी कार्य भया है। यहां नगर समीप ही रहना निषेध्या, तो नगर विर्षे रहना तो निषिद्ध भया ही। चेला चेली पुस्तकनि करि मूढ़ सन्तुष्ट हो है, भ्रान्ति रहित ऐसा ज्ञानी उसे बंध का कारण जानता संता इनकरि लज्जायमान हो - पापकरि मोहित भई है बुद्धि जिनकी ऐसे जे जीव जिनवरनि का लिंग धारकर पाप करै हैं, ते पाप मूर्ति मोक्षमार्गविर्षे भ्रष्ट जानने। -मोक्ष मार्ग प्रकाशक, पृ. 222 - 1. भ आ गा. 1179-1180; मू. आ. ग. 295-296

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