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अनेकान्त/१७ दिगम्बर आगम शौरसेनी के हैं और वर्तमान में आगमों में जो जैन शौरसेनी रूप हैं वे अशुद्ध हैं? स्मरण रहे कि जैन शौरसेनी का तात्पर्य ही मिली जुली प्राकृत
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शौरसेनी करण का इनका नमूना
कुन्दकुन्द भारती वाले, शोरसेनी की घोषणा कर आगमों को शौरसेनी में कर भी पा रहे हैं क्या? प्रस्तुत चन्द शब्द रूपों से इनके प्राकृत ज्ञान को सहज ही परखा जा सकता हैं। शौरसेनी प्राकृत व्याकरण और 'कुन्दकुन्द शब्दकोश' द्वारा इनके समर्थकों के प्राकृत ज्ञान का दिग्दर्शन तो हम करा ही चुके हैं। अब देखिए इनके व्याकरण सम्मत शौरसेनी के कुछ शब्द रूप। इन रूपों को इन्होंने अपने संपादनों में दिया है, जबकि ये शौरसेनी के गीत गा रहे है और पुष्टि में समाज का प्रभूत धन व्यय करा विद्वानों को इकट्ठा करने में लगे हैं। देखें १ समयसार द भारती) गाथा १०,३४, ११२, १२७. से गाथा १२६ और गाथा १४७ तथा 'नियमसार गाथा १४३, १४४, १५६ का 'तम्हा' शब्द रूप। २ समयसार गाथा १ का "वंदित्त' शब्दरूप। ३ समयसार गाथा ६३ का 'तुज्झ' शब्दरूप। ४ समयसार गाथा २१, २३, २४, २५, ३३, २७६ से ३०० तक का 'मज्झ' शब्द रूप। ५ समयसार गाथा ८५ का 'चेव' शब्दरूप। ६ समयसार गाथा २७. ३१, ३८, ४२ का 'खलु शब्दरूप। व्याकरण की दृष्टि से शौरसेनी के नियमानुसार उक्त शब्दों के क्रमश निम्नरूप न्याय्य है, जिन्हें शौरसेनी समर्थक शौरसेनी मे नहीं कर सके (क्रमश देखें) १ तम्हा' की जगह 'ता' होने का विधान है। देखें-प्राकृत शब्दानुशासन सूत्र 'तस्मात्ता
३२ १३ और हेमचन्द्र ८४२७८ २ 'वदित्तु की जगह वदिअ या वदिदूण होने का विधान है। देखें प्राकृत शब्दानुशासन
सूत्र 'इयदूणौ क्त्वा' ३२१० हेम 'कत्वा इयदूणों' ८४२७१ 'तुज्झ' की जगह ते दे तुम्ह होने का विधान हैं। देखें 'प्राकृतसर्वस्व' सूत्र 'तेदे
तुम्हा ङसा ६/८६ ४ षष्ठी विभक्ति में 'मज्झ' होने का विधान नहीं हैं। देखें 'प्राकृत सर्वस्व' सूत्र 'न
मज्झ डसा' ६/६४ ५ 'एव की जगह 'एव्व' होने का विधान है। देखें. प्राकृत शब्दानुशासन सूत्र 'एवार्थे
एव्व' ३२१८ ६ 'खलु' की जगह 'क्खु होने का विधान हैं । देखें प्राकृत सर्वस्व सूत्र क्खु निश्चयें
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संशोधको के संशाधनों में, निश्चय ही शौरसेनी के नियमों से विरूद्ध, अन्य भाषा के शब्द रूप होने से सिद्ध है कि-आगमों की भाषा जैन-शौरसेनी हैं और शौरसेनी के पक्षधर अथक प्रयत्नों के बाद भी 'जैन शौरसेनी' को नहीं मिटा सके हैं। स्मरण