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बेबाक खलासा
निमरिण राजा पालगंज की सहमति से किया था, जिसमें संस्कृति की धरोहर श्री सम्मेद शिखर जी पर्वत की २०५ सीढ़ियां श्वेताम्बर मूर्तिपूजकों द्वारा तोड़ दी गयीं; व्यवस्था मनमाने ढंग से केवल एकाधिकार में संचालित शेष ५०० सीढ़ियां वहां आज भी मौजूद हैं। इस पर हो, इससे अधिक अलोकतांत्रिक कदम और क्या हो विषम्बरों ने मुकदमा चलाया। (वाद नं. १ सन् १९०० सकता है ? व्यवस्था के नाम पर ट्रस्ट का कार्य शन्य है। ई०) विद्वान सब जज हजारीबाग ने अपना निर्णय पहाड की अवस्था को भक्तभोगी यात्री ही जानते है। 8-६-१९०१ को इस प्रकार दिया -..
आखिर पर्वत की आय को जनहित में व्यय करने की "यह पहाड़ राजा पाल गंज के स्वामित्व का है ओर बजाय किसी एक तिजोरी में समेट कर रख लेना वहां इस पर जैनों के दोनों सम्प्रदायो का समान रूप से पूजने तक उचित है? का हक है तथा पहाड़ की सभी टोके दोनों सम्प्रदायों बिहार सरकार पर प्रनाव: द्वारा पूजी जाती हैं । दोनो सम्प्रदायो को मार्ग के उपयोग श्री राजकुमार जैन द्वारा साह अशोक जैन व उनके और उसकी मरम्मत समान अधिकार है। दिगम्बरों सहयोगियों पर पर आरोप लगाना नितांत दविना पूर्ण, द्वारा निर्मित मीढ़ियों को तोड़ने का कार्य आपकृत्य था। बेहदा और बचाना है कि उन्होंने अपने प्रभाव से विहार श्वेताम्बरो को आज्ञा दी जाती है कि वे भविष्य में इस के मुख्यमत्री श्री लालप्रमाद यादव से यह अध्यादेश जारी तरह का कृत्य किर न करें।"
करापा है। कोई भी सरकार आनन फानन में अथवा उक्त फैमा केहि मतिजक श्वेताम्बरा जो किसी व्यक्ति विशेष के प्रभाव में आकर अध्यादेश जारी अपील की वह खारिज हो गयी।
नहीं करती । वास्तविकता यह है कि श्री लालुप्रसाद जी पर्वत की खरीद : एक सामन्तवादी कदम :
ने स्वय शिखर जी जाकर तीर्थ की कुब्यवस्था का
निरीक्षण किया और द्रवित होकर निरीक्षण के समय ८-१-१९१८ का मूर्तिपूजक श्वेताबर समाज न ट्रस्ट क नाम से भारी रकप अदा करके जमीदारी हक पालगज
अपने उद्गार प्रकट किए। उन्होंने दिगम्बगे और
श्वेताम्बरो दोनो की अलग-अलग बैठकें की और स्पष्ट के राजा से क्रय कर लया । श्वेताम्बर मूर्तिपूजक समाज
किया कि या तो जैन समाज मिलकर पर्वत की व्यवस्था का यह कदम सामन्तवादी था। यदि वे सदियों से तीर्य
करे, अन्यथा सरकार पर्वत के प्रबन्ध की दुर्दशा सहन के स्वामी थे और सम्राट अकवर श्रादि से प्राप्त सनद
नही करेगी। श्वेताम्बरो ने मुख्यमत्री के सुझाव की उपेक्षा इनके पास थी, तब पालगंज के राजा को भारी रकम
की । फलस्वरूप सरकार ने अध्यादे जारी किया। देकर इसे खरीदने की आवश्यकता क्यों पड़ी?
सरकार का लोकतांत्रिक कदम : जमींदारी उन्मूलन :
बिहार सरकार का अध्यादेश पूर्ण रूप से लोकजमीदारी उन्मूलन अधिनियम के अन्तर्गत १९५३ में मात्रिक है। अध्यादेश के अनुसार जैन समाज के सभी यह पहाड़ बिहार सरकार की मिल्कियत मे आ गया।
घटको को श्री सम्मेद शिखर पर्वत की व्यवस्था मे समान श्वेताम्बर मर्तिपूजक समान ने उसे चनौती देते हुए
भागीदारी प्रदान ही नही की गयी है। बल्कि सरकार मामला सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत किया (वाद नं० १० वर्ष
द्वारा अपने मालिकाना हक भी जैन समाज को दिये गये १९६७ एव वाद २३ वर्ष १९६८)। उच्चतम न्यायालय
हैं। यदि अध्यादेश में श्वेताम्बर समाजको समान हकम ने उनका यह दावा रद्द कर दिया ।
दिया गया होता, तब वह इसे अलोकतांत्रिक कह सकते दृस्ट कितना लोकतांत्रिक :
थे। श्री राजकुमार जैन का यह कथन कि कल्याण जी दुष्प्रचार का आधार: आनन्दजी (मनिपूजक प्रवेताम्बर) ट्रस्ट लोकतांत्रिक है, श्वेताम्बर मतिजक सेठ कल्याणजी आनन्दजी ट्रस्ट' सर्वधा म्रामक है। समस्त जैन समाज के प्राण और श्रमण इस भ्रामक दुष्प्रचार में लगा है कि बिहार सरकार ने