Book Title: Anekant 1994 Book 47 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 105
________________ २०, व। ४७ दि.०३ भनेकान्त उसका निर्माण हुआ था आदि तथ्य होते हैं। यह जान- की छाया होती है। किन्तु मात ग्यारह या बहुसंख्य फण कारी इतिहाग के लिए बड़ी महत्वपूर्ण गिद्ध होती है। भी देखे जाते है।विक फणो वाली मूनियो को सहस्र तिचा टप पर इस प्रकार कजनेक लेख है. फणी कहा जाता है। महरकणी पार्श्वनाथ प्रतिमाओ के जिनमत होता. जाचार्य अज्जनदो की प्रेरणा से अनेक मदिर भारत में है। अनेक प्रतिकात्रो का निर्माण हुआ था और यह कि सदर १७ बाहुबली की मूर्तिपर जघाओ तथा बाहओ पर तमिल देश कहानी उस पवित्र पर प्रतिमाओ पत्तोंवाली लता जवाय अषित की गई थी और निकट कर लिया था।जयन प्राचीन प्रतिमाओ मे इस ही बाबी भी बन थी। प्रकार काजभाव भी पाया जाता है। मध्य प्रदेश में १८. भरत की प्रतिमा के साथ नी घडी के रूप मे बन . कान . भदेव 84 फीट ऊची नो निधिया अक्ति की जाती है जा यह भूचित करती है कायोमग प्रतिमाह किरण के अभाव में उसकी कि जिसकी यह मूर्ति है, वह किमी ममय नौ निधियो से प्रावोनता ही नाकी जा सकती। विवरण युक्त चक्रवर्ती सम्राट् था। त्र.पामदेव के पुत्र इन्हो भरत निम देने का पनाद प्रारभ हआ। विनम्रता की के नाम पर देश भारत कहलाता है। पमा १८ जन मान्यता के अनगार सिद्ध भगवान की १२. समायचंत्याक्ष, जाकि सामान्यतः आन- प्रतिमाओ के साथ जान नही किनाते जो कि तीर्थकर वृ..होगा । वापरही, पादपीठ पर प्रतिमाओं के साथ किए जाते है। नियम है जो कभी...काहा जाट मानव-यदी या शामन देवता, मोक्ष प्राप्त कर चुकी है वे अगरीरी होती है, इस कारण आसन के दोनो बा पाद पीट पर पाच या स उनकी प्रतिमा का निर्माण सामान्या धातफलन पर चार टिका जमान होता। मीलिए उसे सिंहासन रिक्त मनुप्याति के रूप में होता है। म प्रकार की का जायर हानायः महावीर स्वामी की निर्मिति को स्टेसलक्ट' कहा जाता है। एगी प्रतिमा प्रतिमा यि हस्त होगा। सिंह से यह कायोत्सर्ग या खड़ी हुई ही बना जाती है। सूचित ..नीर ने भरपी भयकर मिट्टी को २० तीर्थकर प्रतिमा के कान ला बनार का है जो जीत ।। कि कभी-कभी दो को छूत या भी जान पर है । आज १. प्रमिामक के तीन छत्र उत्तीर्ण भी लबे कान महापुरुष होन के गूचा मान जाते किए जारहे। भीगी होता , और कही है। मूर्ति के कान फटे हा या अन्य किसी दोष से पूर्ण कही मार भी देना जाग। भात अलग से सोने नही होते और न ही उनमे मिा कार के नाभूषण या चादी के भी लटका दी है। वा तव मे, छत्रयी होते है । जिन पामा भी विशेष पहिचान। तीर्थकरो के लोधन या चिन्ह :Cognizances) १. निति के पी. भामडल hale भी लगभग १. ऋषभदेव या वृषभदेव बन पा वृषभ अनिवार्य रूप से अनित किया जाता है। यह पृष्ठासन मे २. अजितनाथ उत्कीर्ण L.या जाना है। वह गोलाकार बहुसख्य किरणो ३ सभवनाथ अश्व जैसी रेखाओं से युक्त होता है जहा इसमे कोई कठिनाई ४. अभिनदननाथ कपि या बंदर होनीया गत या अधिक अलारण करना चाहते ५. मतिनाय पाँच या चकवा है, वह। प नाचना गामडल भी लगा देते है। कमल ५ मानती। मृगाना की प्रतिमा पाच ७. सुपार्वनाथ नद्यावर्त गिर ) फणो से युक्त भी बनाई जाती है। स्वास्तिक श्वेताम्बर) १६. पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर सामान्यतः नौ फणों ८. चंद्रप्रभु अर्धचंद्र

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