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आगमों के सम्पादन की 'घोषित-विधि' सर्वथा घातक है
, पद्मचन्द्र शास्त्रो, सम्पादक 'अनेकान्त'
"प्राकृत-विद्या' जून ६४ मे प्रकाशित आगम-सम्पादन इनकी परिभाषा के सम्बन्ध मे पं० कैलाशचन्द शास्त्री ने की निम्न विधि को पढकर हमे बड़ी वेदना हई कि- अपने 'जैन साहित्य का इतिहास' ग्रन्थ प्रथम भाग के पृष्ठ "उन्होंने संपादक ने) ओक ताडपत्रीय, स्तलिखित और ३३ पर इस भांति लिखा हैमुद्रित प्रतिगे का तुलनात्मक अयन करके अपने सूचना सूत्र "जिम गाथा द्वारा किसी विषय की सूचना मम्पा.न के दुछ सूत्र निर्धारित किए और उन सूत्रों के
दी गई हो उसे सूचना सूत्र कहते हैं।' अनुसार प्रर्चानत परम्परा की लीक से कुछ हट कर
जैसे—"केवडिया उवजुत्ता सरिसीसु च" छात्रोपयोगी सम्पारन किया।"
आदि - कसायपाहुड की ६४ वीं गाथा । उक्त घोषणा से नि सन्देह विश्वमान्य सम्पादन-विधि पच्छा सत्र_जिन गाथा मे किसी विषय की पच्छा के विपरीत-एक आत्मघाती, ऐसी परम्परा का सूत्रपात
की गई हो, कोई बात पूछी गई हो वे हआ जिससे परम्परित प्राचीन मूलआगमो की असुरक्षा
गाथाएं पृच्छा सूत्र कही गई है ।' (लोप) का मार्ग खुल गया । क्योकि ऐसे और व्यक्ति भी
जैसे-'केबचिरं' उवजोगो कम्मिकसायम्मि' हो सकते है जो जब चाहे मनमानी किसी भी अन्य मापा
आदि कसायपाहुड की गाथा ६३ । का सूत्र-रूप मे निर्धारण कर परम्परा की लीक से हट कर वागरण सत्र -- जिसके द्वारा किसी विषय का व्याख्यान सपादन कर ले। ऐसे में आगमो का मूल अस्तित्व
किया जाता है उसे वागरण यानी ब्याख्या सन्देह के घेरे में पड़ जायगा और किसी अन्य की कृति को
सूत्र कहते हैं। जैसे 'सव्वेगु चाणुभागेसु बदलने का हर किसी को अधिकार हो जायेगा और ऐसा
संकमो मज्झिमो उदओ' आदि कसाय पाहुड करना सर्वथा अन्याय ही होगा।
की २१९वी गाथा का उत्तरार्ध । वस्तुतः आगमों की भाषा के सम्बन्ध में विद्वानों में
लेख में संशोधको की ओर से उक्त गाथा के 'सब्बेसु अभी तक किसी एक भाषा का निर्धारण या अन्तिम निर्णय नही हो सका है और न निकट भविष्य में इसकी संभावना सुतं' इत्यादि टीका गत भाग वो शब्दशास्त्र सम्बन्धी ही है। भाषा के सम्बन्ध में अभी तक विद्वानो के विभिन्न व्याकरण सुन (ग्रामर) बतलाने का असाध्य प्रयास किया सन्देहास्पद मत ही रहे है ।
गया है, जबकि प्रसंग में यह व्याख्या मूत्र है-ग्रामर जैसा उक्त अक मे ही प्राचीन परम्परित प्राकृत आगमो मे
म हा प्राचीन परम्परित प्राकृत आगमा में कुछ नहीं है। व्याकरण का प्रयोग सिद्ध करने के लिए अनेक व्यर्थ के उद्धरण
संशोधको की दृष्टि में यदि उक्त, उद्धरण शब्द भी दिए गए है और वे भी परम्परा से हट कर । आखिर,
शास्त्र (ग्रामर) सम्बन्धी सूत्र है तो क्या कोई सम्मानित व गाड़ी लीक से उतर जाय तो दुर्घटना क्यो न हो ? हमने ,
पुरस्कृत बडे से बड़े ज्ञाता यह बताने में समर्थ है कि यह इस लेख मे उन लीक से हटे उद्धरणो को निरस्त करने
सुत्र शोर सैनी आदि प्राकृतो में से किस प्राकृत के लिए के लिए आगम के प्रमाणों एवं युक्तियों का उपयोग
निर्धारित है और इसका क्या प्रयोजन है तथा यह किस किया है ताकि आगम श्रद्धालु वस्तुस्थिति को समझ ।
शब्द रूप की सिद्धि में उपयोगी है और कौन से आदेश, सके । तथाहि
आगम या प्रत्यय आदि का विधान करता है और इसका १. वागरण' का प्रसंग गत अर्थ : व्याख्या क्या शब्दार्थ है ? आगमो और आचार्यों के मत में तो उक्त
आगम में कई प्रकार के सूत्र बतलाए गए है, जैसे-. प्रसंग मे आया 'वागरण' शब्द व्याख्या के अर्थ में लिया १. 'सूचना सूत्र २. पृच्छा सूत्र ३. वागरण सूत्र वादि। गया है-व्याकरण सूत्र (ग्रामर) जैसे अर्थ में नही।