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किरात जाति और उसको ऐतिहासिकता
महाभारत के कर्ण पर्व में किरात आग्नेयशक्ति के द्योतक को किरात मानने में कोई बाधा नही । यद्यपि काराकोरम माने गये हैं। आश्वमेधिक (७३/२५) मे वर्णन है कि अर्जन की घाटी से पूर्व से बहने वाली गंगा के पहले नही, किन्त को अश्वमेधीय घोड़े के साथ चलते समय किरातो, यवनो बाद फिरातों का सामना होता है तो भी कैलाश के दृश्य एवं म्लेच्छो ने भेटें दी थी। भारतीय जनजातियो की महिला का उल्लेख हुआ है और मान सरोवर उसी पर्वत शृंखला परिचारिकाओ का भगवती सूत्र में उल्लेख स्पष्ट रूप से में है। उसमे कोई मन्देर नही कि भूटान और उसके यह द्योतित करता है कि उत्तर मे वैशाली से किरात देश पड़ोस के निवासी किरान कहे गए हैं। पेरिप्लस" किरातों तक व्यापार सम्बन्ध थे । जम्बुद्दीव पण्णत्ति में किरातो को गंगा के मुहाने के पश्चिम के निवामी मानता है और का चिलात (चिल इया) के रूप में उल्लेख किया गया है। पोलेमी टिपेरा के आस पास के परन्तु ऐसा प्रतीत होता विष्णु पुराण मे किरातो का उल्लेख है" । वीर पुरुषदत्त है कि भारतीय साहित्य में उनकी समस्त हिमालय शृंखला के राज्य के १४वे वर्ष के नागार्जुनकुण्ड अभिलेख मे भी में और विशेषतः ब्रह्मपत्र की तराई में स्थान दिया गया किरातो का उललेख है। इन सब मे इस जाति को अनार्य है। किन्तु कालिदास उनको लद्दाग्य के आग पास में कहा गया है । नागार्जुनकुण्ड अभिलेख में किरातो रखते हैं । का बदनाम, बेईमान व्यापारियो के रूप मे वर्णन किगत भारत की अति प्राचीन अनार्य (संभवतः है। मेगस्थनीज के वर्णन मे ऐसे व्यक्तियो का उल्लेख है, मंगोल) जाति जिसका निवास स्थान मुख्य न. पूर्वी हिमाजिनके नथुने के स्थान पर केवल छिद्र होता था। सम्भ- लय के पर्वतीय प्रदेश मे था। प्राचीन संस्कृत साहित्य में वतः ये किरात थे। टॉलमी ने किरातो को सोडियन किरातो के विषय मे अनेक उल्लेख मिलते है। जिनसे कई (वर्तमान मुद) जाति का कहा है जो अक्ष (oxus) नदी मनोरंजक तथ्यों का पता लगता है। प्राय. उनका सम्बन्ध द्वारा बैक्ट्रियाना (Bactriana) से अलग हो गयी थी। पहाडो और गुफाओं से जोडा गया है और उनकी मुख्य ___ यह जाति हिमालय के दक्षिणी विस्तृत भू-भाग ब्रह्म- जीविका आखेट बताई गयी है। अथर्ववेद में सपंविष पत्र के पास के पूर्वी इलाके असम, पूर्वी तिब्बत (भोट), उतारने की औषधियो के सम्बन्ध मे किरात बालिका की पूर्वी नेपाल तथा त्रिपुरा में बस गयी थी। विमलमूरि स्वर्णकुदाल द्वारा पर्वत भूमि से भेएज, खोदने का उल्लेख कृति परमचरिय मे उल्लिखित है कि कुछ अनार्यों ने जनक है (अथर्व० १०४,१४) वाजसनेयी संहिता (३०,१६) और के देश पर आक्रमण कर दिया था। ये जातियां थी म्लेच्छ, तैत्तिरीय ब्राह्मण में किरातो का सम्वन्ध गुहा से बताया शबर, किरात, कम्बोज, गक तथा कपोत (कपिश)। गया है- 'गुहाम्य. किरातम्'। वाल्मीक रामायण में
भारतीय साहित्य मे किरतो का प्रयोग सामान्य अर्थ किरात नारियों के तीये जड़ो का वर्णन है, और उनका किया गया है । कालिदास के किगत निश्चय ही तिब्बती शरीर वर्ण सोने के समान वणित है-किरातास्तीक्षणया लद्दाख, जस्कर और स्पा के तिब्बती वर्मी थे। फिर चडाश्च हेमामः प्रियदर्शनाः (किष्किधाकाण्ड ३४०।२६) । भी मानमरोवर के चर्दिक निवास करने वाले, तिब्बतियो
(क्रमश)
सन्दर्भ १. Rapson Cambsidge hirtory of India ७. चकार वसतिं तत्र भिल्लाना निचर्ययंत.। vol. II
तत्तदाचरण कुर्वत्स तदा भगवानृपि. । २. कालिदास का भारत भाग १ पृ० ६४
रेमे 'सोऽपि किगतश्च'-केदारखड २०६/२-३ ३. ग्रियर्सन : Linguistic survey of India Vol
८. Sherying : Western Tibet and British I Part| पृष्ठ ४१४५
borderland P. 15 ४. कालिदास का भारत भाग १ पृ० ६४
६. यथा--किरख, किरसू, खिरसू, किरभाणा, किरमोला, ५. राहुल साकृत्यायन-ऋग्वैदिक आर्य पृ० ८२
किरपोली, किरसात, किरसिया, कीर आदि। ६. राहुल सांकृत्याययन : गढ़वाल पृ० ४२
१०. केदारखण्ड अध्याय २०६ (शेष पृ० ३ कवर पर)