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जैन और बौद्ध मतियां
लेखक : राजमल जैन भारत के अन्य भागो की भाति केरल मे भी जैन बौद्ध पारर्वनाथ की मूनि हटा दी गई तो केवल फण ही शेष रह मूर्तियों में भेद का अभाव पाया जाना है अर्थात् जैन गए। उन्हे देख शायद इस मंदिर का नाम नागनाथ मदिर मूर्तियो को कभी-कभी बुद्ध की मूनि कह दिया जाता है। रख दिया गया। तात्पर्य यह है किरातत्वविदो को तो केरल स्टेट के गजेटियर वॉल्यूम ११ (१९८८ मे जो चित्र कम से कम जिन प्रतिमाओ नेमबंध में गम्यक जानकारी पुस्तक के अन्त मे दिए गए है, उनमे भी इसी प्रकार की होनी चाहिए ताकि गजेटियर जमी भले न हो और लोगो भूल देखी जा सकती है। इसमे कल्लिल की जैन मूति के को मही जानकारी मिल सके। साथ एक चित्र छपा है। उसके नीचे एक पक्ति मे छठी शताब्दी के विग्यान अन ग्रंथ बहत्महिता में Buddha at Paruyassery मुद्रित हुआ है। यदि इस जिन प्रतिमा का निर्माण वराहमिहिर ने निग्न प्रकार चित्र को ध्यान से देखा जाए, तो यह स्पस्ट होगा कि तीन बनाया है-- छत्रो या छत्रत्रयी से शो मत यह नग्न दिगबर जैन मूति आजानुतम्बबाह' श्रीबन्या प्रान्त विदच । पद्मासन मे है और उसके आसपास सभवत चमरधारी
दिग्वासास्तरूणो रूपवारच कार्याना देवः ।। है। छपाई स्पष्ट नहीं है।
अर्थात् अर्हन्त या जिन प्रतिमा घुटना तक लबी कन्याकुमारी जिले के चितगल गाय के पास एक भुजाओवाली, वक्षस्थल पर श्रीव म चिन्ह मे युमन, प्रशान्त, पहाड़ी का नाम है तिरूच्चारणटमले जिमका अर्थ होता दिगम्बर या नग्न, तरुण अवग्थावानी तथा गदर या रूपहै-चारण (ऋद्धिधारी जैन मुनि) की पवित्र पहाड़ी। वान बनानी चाहिए। यह लण कायोत्मग प्रतिमा पर वहां का प्राचीन गुफा मदिर अब भगवती कोविल या लागू होता है। मंदिर कहलाता है । इसके गर्भगह में महावीर पार्श्वनाथ केरल के पसिद्ध पुगनववेना श्री गोरीनाथ गव ने और अम्बिका देवी की मूर्तिया है । कोविल के पुजारी भी यह इलोक उद्धत किया। महावीर की मूर्ति को युद्ध की मूति नवाते है जो कि जन मानसार नामक गिढ़ ग्रश में भी नि प्रतिमा भूति के संबंद्ध में जानकारी के अभाव के कारण है। इसी का न.ण दिया गया। प्रमोग्न के गागने इमका प्रकार अन्य जैन प्रतोको के सबंध में भी भाति होती है। अग्रेजी गंम्करण है। -ममे निम्न प्रा र उत्त* .."It पार्श्वनाथ की मूर्ति पर फणावली के सबध में जानकारी should have tv.n arms and twyes and के अभाव में भी म्रम उत्पन्न होता है। अब वे नागगज should be clean . ' on 1 : should कहलाते हैं जैसे नागरकोविल या मदिर। फणो के कारण be the top knot ( 11 ) 6: विद्वान उन्हें अनन्तनाग पर शयन करने वाले विष्णु बना संपादक ने प्रश्न चिन्ह टीक ही ना है। जिन पतिमा लेने में या मान लेने में कोई कठिनाई अथवा आपत्ति केशहित नही होती। इसके म तक पर ज़डा जमा भी नही हुई होगी। सोलहवी सदी तक वह कोविल जैन नहीं बनाया जाता। व? बुद्ध का उणीप हो गलता है। मंदिर था। परिवर्तन करने वाले शायद यह भूल गए कि जैन मूर्ति और मदिर निर्माण सबंधी अनेक प्राचीन विष्णु वाहन तो गरुड़ है जो नाग का शत्रु है। ऐसी ही ग्रंथ है । यहा विक्रम की तेरहवी सदी के लेखक पं० आशाएक स्थिति कर्नाटक के एक गाव लक्कुडी में हुई है जब घर के ग्रंथ से एक उदधरण दिया जाता है । उन्होने अनेक