Book Title: Anekant 1994 Book 47 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 107
________________ श्रुत परम्परा - मुनिश्री कामकुमार नन्दी भाव शून एवं द्रव्यश्रुत के भेद मेश्रुत दा प्रकार के और चौदह पूर्व ग्रन्यो की क्रमशः रचना की। अत. भावहैं। इनमें भाव की अपेक्षा श्रुत अनादि निधन है (न श्रुत और अर्थ-पदो के वार्ता नीकिर है तथा तीर्थकर के कभी उत्पन्न हुआ और न कभी होगा) पर द्रव्यथुन- निमित्त को पाकर गौतम गणधर श्रुत पर्याय से परिणत शास्त्र परम्परा कालाथित है। यह योग द्रव्य जोन कान हुये । इसलिए द्रव्युत के कर्ता गौतम गणधर है । में ज्ञानी, निर्ग्रन्थ बी./रागी गती द्वारा जानीकना यया - में तथा वाह्य निर्विघ्नताओ मेनन रचना के रूप में "श्रतमपि जिनवरविहित गणधर-रचिन द्वयनेकउत्पन्न भी होता है और ज्ञान वीनान दास मदम्यम् । स भरतखड के आप्रदेश के अनेक जनपदो विघ्न बाधागो के काविनानो मत होना म विहार करके जब चतुर्थकाल में साढ़े तीन माम कम रहता है। चार वर्ष शेष रह गये तब फातिक कृष्ण चतुर्दशी मे श्रावण कृष्ण प्रतिपदा के दिन (तमान में जो भार गति के अन्तिम पहर मे कमल वनो के वेष्टित पावाशासन जयन्ती के रूप मे महान पर्व माना जाता है) सूर्य पुर के बाहरी उद्यान में स्थिति सरोवर रो भगवान के उदय होने पर रौद्र नामक मदत मे चन्द्रमा के अभि महावीर स्वामी मुक्ति को प्राप्त हुए। उसी समय गौतम जित नक्षत्र होने पर नातो लोगों के गुर बमान महावीर मगवर केवल ज्ञान से सम्पन्न हो गए तथा वे गौतम के धर्म तीर्थ की उत्पत्त हुई अति पानपर्यना से योमा गगधर भी बारह वर्ष में मुक्त हो गए। जब गौतम यमान राजगृही नगरी के पास न-दान से पूरि गणध परिनिर्वाण को प्रात हुये उसी क्षण में सुधर्मा सर्व पर्वतों में उनम एव बाल विना.... f7 नाचत मुनि को जान प्राप्त हुआ। भी बारह वर तक लगानामक पर्वत पर भगवान मनवीर ने मजसको तार धमिन (थुन) की बी पार उत्कृष्ट मिद्धि को जीवाति पदार्थों का प्रथम बदल दिया। माप्त हुये । तत्पश्चात् जम्बू स्वामी केवल ज्ञानी हुपे । भावान महावीर स्वामी का विश्वविहन राजगही उन्होंने इस भरत क्षेत्र के आर्यखण्ड में अडतीस बों तक में वि, चल पर्वत पर १६ वार समवनर, हआ था। लगातार विहार किया तथा श्रुत द्वारा भव्य जीवो का उपकार कर अष्ट कर्मों का क्षय कर मुक्ति को प्राप्त इससे पूर्व बीसवे तीर्थकर श्री भुनि मुबनगा। भगवान के किया। ये तीनो अनुबद्ध केवली की सम्पदा को प्राप्त के जन्म के कारण भी यह पञ्च- र-राज गिरि थे। इनके मोक्ष चले जाने के बाद इस भरत क्षेत्र मे पवित्र है। केवल ज्ञान रूपी सूर्य अस्त हो गया। "पचशैलपुरं पूर्त मुनि सुव्रतजन्गना"। "हविश पु० जिन सेनाचार्य । तदनन्तर विष्ण, नन्दिमित्र, अपराजित, गोवर्धन गौतमगोत्री विप्रवर्णी चारी वेटो और एडंग विद्या के और भद्रबाहु ये पाँचो ही आचार्य-परम्परा के थे तथा पारगामी शीलवान और ब्राह्मणी मेड वर्द्धमान स्वामी क्रमश चौदह पूर्व के धारी हये। इन्होने (सो, वर्ष के प्रथम गणधर इन्द्रभूति नाम से गिद्ध हुए। भाववैत पर्यन्त भगवान् के समान यथार्थ मोक्ष मार्ग का प्रतिपादन पर्याय से परिणत इस इन्द्रमति ने अन्तर्महतं मे बारह अंग (उपदेश) किया। बाद मे विशाखाचार्य, प्रौष्ठिल, क्षत्रिय,

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