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औचित्य धर्मका
पर सम्प्रदाय निरपेक्षता की बात कहना अधिक उपयुक्त उनका आदर्श चरित्र त्याग की भावना गे परिपूर्ण रहा होगा। क्योकि आज जो बुराश्या सिर उठा रही हैं और है। ऐसा नही है कि आदर्श जीन पति वाली विभजिन बुराइयो ने जनमानस में अपनी पैठ बना रखी है तिया ही अपनी पावन गरिमा गरे को महिमा उनका मूल या उगम मम्प्रदायवाद और साम्प्रदायिक मंडित करती रही हैं, तु दुर्गोपन, दुगमन, जयनन्द, भावना मे है। लोगो मे असहिष्णुता और विद्वेप की गोडमे जैसे कायर पुरु भो अपनी दुर्गायना मोर दुन्यो भावना सम्प्रदायिकता के कारण उत्पन्न होती है, न कि से इस धरा की पवित्रता और उत्कृष्ट नानो गमिहन करते धर्म या धार्मिक नाता के कारग। धर्म तो सहिष्णुता, रहे है, किन्तु फिर भी हमारे धामिर, दार्शनिक एवं सद्भाव, वैचारिक उच्चता और पारम्परिक सौमनस्य को सास्कृतिक मूल्य और और उन पर साधा गिद्वा-त जन्म देता है अन वर्तमान मे धर्म की आड लेकर पिया अपरिवर्तित रहे हैं। अनेक शिवशी आम.माणो और पर. जा रहा रहा सम्पूर्ण व्यवहार और क्रिया कलाप हमारी तन्त्रता के बावजूद उनगे कोई परिवर्तन नी अ.या। विकृत मानसिकता और नातक मूल्यों में गिरावट कानी यद्यपि यह संमार और दम गंगार गी गगन भौतिक सकेत करता है। आज हप अपनी बात तो रहना चाहने वस्तुए परिव-निशील हे और गबाण बदाना रना है, है, किन्तु दूमगे की बात नही मुनना चाहते। आज लोग किन्तु धर्म कभी नहीं बदला, वापि , या की जिस धर्म और धामिक मदभार की बात करते है। उगका धुरी पर आरित होता है, उगले गुल मे "याग और अमल या आवरण शायद एक प्रतिमान नहीं कर पाते है। पर कल्याण का भाव निहित रहता है। नियमात फिर उस धर्म या धार्मिक मर्यादा की रक्षा की बात
मे जो धर्म निरपेक्षता की बात की जानी-17 तक उनके मन में गाना कितनी हारपाम्पद लगती है। आज उाचत आर आर प्रागोगा +7 याचा लोगो के दिलो में धर्म नही, सम्प्रदायिकता के बीज बोए
व्यापक सन्दभ मे यदि देगा नाप नोभा प्रति जा रहे हैं। इसीलिए लोगो के मन में महिष्णुता की
मे सम्प्रदाय या पय को भी पाने या ति ने बजाय अमहिष्णता पनपनी जा रही है। जब की पग
अवसर मिले है। भारतीय मा निकायला मी काष्ठा होती है तो नमान के ठेकेदागे के मन मे यदरता है कि उसने सभी राम्प्रदायो को पर्याप्त मान Hिer की विकृति मापदाकि उन्माद आने पूरे उफान के माप यथा सम्भव आत्मसात ज्यिा। फिर 17 : 11 निकलता है और नर महार का विकगन रूप धारण कर प्रकार का विसार उतान्न ना । एगना मारा गह सम्पूर्ण मामाजिक व्यवस्थाओ को छिन्न-भिन्न कर देता था कि जो भी मम्प्रदाय या पप भाग
: है। गके प्रत्यक्ष उदाहरण हम पिछले दिनो के दगी में आत्ममान् होकर विकगित मा उमगे गो मायाण या देख चुके है।
जनहित की भावना मर्वोपरि थी। यदिगिनी -AT यद्यपि भारतीय गमाज में प्राचीन काल से ही अनेक
तो यह देश कभी का विखण्डित हो गया होना । माय
ता यह दश कभा विकृषियो का आवागमन होता रहा है, इसके बावजद के मूल मजा भाव निहित है। च। यह है finा भारतीय दर्शन नीर मम्वृनिती अक्षणता बरा.रार हैजो किसी से कुछ प्राप्त करन को म. गावो मापक मानसिकता, चिनन पद्धति और दटकोण की व्यापकता।
प्रकार से देना। इसी मे जन कल्याण एव मगल की उदात्त की परिचायक है। इसे देखते एहगे यह विश्वाम रखना
भावना निहित है। अतः गम्प्रदाय मे किसी प्रकार चाहिये कि वर्तमान समाज में आई विकृति भी अधिक
के अनिष्ट होने का तो प्रश्न ही नहीं है। समय तक रहने वाली नहीं है। हमारे देश और समाज आज देश मे जो कुछ भी घटित होना है की मे यह परम्पग रही है कि देश में जिन महापुरुपो ने त्याग समीक्षा की जाय तो ज्ञात होता है कि आज जन मानस में या उत्सर्ग किया है वे सर्वदा पूज्य रहे है। महावीर, बुद्ध, पर्याप्त बदलाव आया है। लोगा की मानसिक जाज राम और महात्मा गांधी उमी कोटि के महापुरुप रहे हैं।
शेप पृ० ३१ पर)