Book Title: Anekant 1994 Book 47 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 74
________________ जैन संस्कृति साहित्य की रक्षा : एक चिंतन २७ उनके आदेशानुमार अपनी अजित धनराशि धार्मिक कार्य समाज का करोडो रूपया लग रहा है। बागोदा एव के नाम पर दान मे दे देती है। धर्म-प्रभावना का क्षेत्र मुगावली मे ३३, जबलपुर एव देवगे ५-५, अशोक भी मर्यादित है। देवगढ, मेरोनजी, चन्देरी आदि के नगर मे ७ गजरण चले । जब ललितपुर में गजरथ चलाने प्राचीन कलात्मक क्षेत्र इस कृत्य के शिकार हो गये। इम को तंगारी हा रो। जता ३.५ ७ ग. रथ चले वहा प्रवृत्ति को रोकने हेतु अखिल भारतीय जैन विद्वत पर द मर्वेक्षण करने ना जरूरत है 'क इन नाममनोग समाज ने पुर्रा अधिवेशन में निम्न प्रस्ताव पारित किया जो का कितना धन-जन का यहुआ और समाज या सम्याओ अनुकरणीय है को इमने कितनी क्या उपमान हुई। यह वा. जोप __ "वर्तमान काल मे जैन समाज में कुछ ऐमी प्रवृत्तियों है कि कदम धन का उपयोग शिकत्सा, स्वास्थ्य, प्रारम्भ हो गयी है जिनमे प्राचीन कलाकृति पो, मनियो निधन माायता, 'प-निबाण, पगे।11', णुद्ध आहारमोर पुरातन शिल्पावशेपो को जीर्णोद्धार कर पुन प्रनि- स्था, काम के य .:/4 कर स्थायी ष्ठित करने के नाम पर मनमाने ढग मे काटा-छाटा जा लाभ 11.1 जागरता है। रहा है जो उनकी ऐतिहासिकता व उनके मल स्वरूप पर एक 'पच . ल्या. क माय इ.1.1 At कान भाषात है। देवगढ़, सेरोन एवं चन्देरी आदि स्थानो पर पाका ओय है। जनतो गमनागमभिरा" इसी प्रकार के भागमविस्द्ध कार्य किए गये जिनमकना नेला मीन- नि.पं. दीपा में कृतियों पर अकिन चिह्नो के स्थान पर नये चिह्न अकिन ठहरहा। दस प्रत । प्रजाकिए गये हैं। कही-कही तो इम प्रकार के कयों में त्यागी हिना और पानामनी गानुपादक वर्ग की प्रेरणा एव सक्रिय सहयोग भी लक्षिन होता है। काय? म ममा l धन व्यय होगा। विगान इस प्रकार के भागम-विरुद्ध कार्यो से हमारी सस्कृति और हाथी-समूह से जन रक्षा गुरक्षा की ममता पैदा होती है। कला की जो हानि हो रही है वह अक्षम्य है । अतः विद्धन कभी-कभी हागो-उन्माद में निरसा भी हो परिषदका सभी त्यागियो व श्रावको से यह सविनम्र अनुरोध जाती है जमी जोक नगर में याद किमी का कहीहै कि इन प्राचीन कला-कृतियो व पुरातन शिल्पावशेषो के कुछ-करने की तमन्न, है तो उन्ह चाहिये कि उचित सरक्षण मे सजग सहयोग प्रदान करे।" वेशधारण कर धर्म या समान के न्याण का कार्य गरे । पचकल्याणको के साथ गजरथ चलवाकर 'सिंघई", इममें वीतरागी चिह्न का दुपयोग व बलन सक "सवाई-सिंधई" की पदवी देने की प्रथा चन्देरी में चली जायेगा । विश्वास है 11 समा। क. प्रवीजन इन बिंदुओं यो । गजरथ चलवाना कोई धार्मिक-क्रिया का अग नही पर मम.कणिप लेंगे जोर जपत धन का मानवहै यह तो मात्र धन-प्रदर्शन का तरीका था जिसे ध मिक- सेवा/पाणी सेवा के क्षेत्र में करन का विचार करेंगे। किया से जोड़ दिया था। पहले गजरय महोत्मव यदा कदा दर्शन भाव में हाथियोपारियो पा गये करोडो होवा करत थे और वह भी किसी परिवार विशेष द्वारा रुपये के व्यप म कोई धर्म नही गोता भा ही प्रे पादाना चलाये जाते थे, अब इनका स्वरूप शुद्ध व्यवसायिक एव एव व्ययकर्ताओ के अह नी नुष्टि होती हो, यह पृथक मत्र प्रदर्शन का हो गया है। पहले एक पचकल्याणक के बात है। साप एक गजरथ चलता था, अब एक पचकल्याणक के प्राचीन मंदिरोंके स्थान पर खले परिसरका निर्माण : साथ बनेकों गजरथ चलाए जाने लगे है। गहत्तीजन पहले मूर्तियो की रक्षा सुरक्षा का टिम मदिरा का होड़ लगाकर मामहिक रप से एक गजरथ के स्थान पर निर्माण इम ढग मे किया जाता था f: २०-२५ फोट उत्तरोत्तर बढ़ती संख्या मे गजरथ चलवाने की कीर्तिमान ऊनी विशाल मूरि या शिखर महिन म.द. एक मामान्य स्थापित कर रहे हैं। एक साधु महानुभाव तो अब श्री मंदिर जमा लगता था। दूर म कार्टनर कपना भी नहीं गजरबसायर ही कहलाने लगे हैं। इन गजरयो में करता . दरम1111शिलाँ'वया।

Loading...

Page Navigation
1 ... 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120