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जब यही प्रश्न दिगम्बरो से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि के जमीदाराना अधिकार खरीदने पड़े। बैनामे मे खरीदार का नाम उनके शास्त्रो के अनुसार जिन स्थानो को देवो ने चिन्हित कर दिया श्री कस्तूरभाई है । “व्यक्तिगत' हैसियत व अध्यक्ष आनन्दजी था वहीं भगवान के चरण स्थापित कर टोके बनाई गई । विद्वान कल्याणजी फर्म लिखा है। इस बैनामे मे पर्वत के जगल मात्र का न्यायाधीश ने निर्णय में कहा कि स्थान की निश्चितता इस बात जमींदारी अधिकार खरीदा था जो भूमि सुधार अधिनियम 1950 का प्रमाण है कि वे सभी स्थल दिगम्बरों की प्राचीन मान्यता के लागू होने पर समाप्त हो गया । बैनामे मे यह भी स्पष्ट लिखा था पूजनीय स्थल हैं। उन्होंने तो यहा तक कह दिया कि वहा अगर कि इस खरीद का कोई प्रभाव दिगम्बरो के धार्मिक अधिकारो पर चबूतरे, टोंकें या चरणचिना न भी होते तो भी उक्त सभी स्थल नहीं पड़ेगा । बैनामे मे मदिर या टोके बेचे जाने की कोई चर्चा दिगम्बरों द्वारा अवश्य पूजे जाते।
नहीं है क्योकि राजा को जगल के जमींदारी अधिकार के अलावा " Muchturns on the spottheory asst goes tothe root मंदिर या टोके बेचने का अधिकार ही नहीं था। वैसे भी हमारे of exclusiveness, the Swetambars deny it altogether देश मे मदिर या टोको की खरीद-फरोख्त नहीं हो सकती है। The Digambars, as the evidence shows would worship the spot even if there was no Tonk or Charan "Purchaser shall hold Parasnath hill subject to all over them."
rights and in particular to nights, if any, of access
to and worship in the said area appear attaining to any कुटिलता पूर्ण जालसाजी
SCLIS and subject to any order which may be
passed in appeal No 226/1917 now pending in Patna श्वेताम्बरो से जब यह पूछा जाता है कि पर्वत के स्वामी आप
High Court preferred by Digambar Jains" थे तब अकबर व आदिलशाह से फरमान लेने की आवश्यकता
बिहार सरकार : श्वेताम्बर समझौता क्यो पड़ी? क्यो 1500/- वार्षिक पर चढ़ावा खरीदने की आवश्यकता पड़ी? क्यो राजा पालगज से जमीदारी अधिकार
आनन्दजी कल्याणजी ट्रस्ट का यह दावा भी वेबुनियाद है खरीदने की आवश्यकता पड़ी? क्यो बिहार सरकार से मैनेजरी कि भूमि सुधार अधिनियम लागू होने पर भी उनकी मिल्कियत की 60 प्रतिशत आमदनी लेने का इकरारनामा किया? इन सब
नामा किया नमन समाप्त नहीं हुई । यदि उनकी मिल्कियत समाप्त नहीं हुई थी तो प्रश्नों का उनका एक ही उत्तर है कि पहाड़ पर कब्जा रखने के उन्हान भूमि सुधार आधानयम कविरुब सुप्रीम कोर्ट में रिट स० लिये जब जैसा अवसर मिला हमने किया।
58/1964 क्यो लगाई? बाद में मुआवजा लेने के दावे क्यो
डाले ? 1965 में बिहार सरकार से इकरारनामा क्यों किया? वस्तुस्थिति भी यही है कि अपनी इन कुटिलताओ के कारण ही उन्होने पर्वत पर कब्जा बना रखा है। पटना उच्च न्यायालय
"The parties hereby agree that no question of com
pensation as envisaged by provisions of the Bihai ने अपने निर्णय 1441921 मे स्पष्ट रूप से इन फरमानों को Land Reforms Act 1950 anses in view of the settleकुटिलतापूर्ण जालसाजी बताया है। उनके एकाधिकार के दावे ment arrived at " को भी न्यायालय ने अमान्य कर दिया ।
इस समझौते के अनुसार श्वेताम्बरी दावा करते है कि वे पूरे
पर्वत व टोको के मालिक है जबकि समझौते मे केवल श्वेताम्बर "That Ferman was inspected by the sub ordinate Judge and the seal was pronouned to be similar the मदिरो अर्थात् जलमदिर और चार नई टोकों की ही चर्चा है। scal upon the document now under consideration, butif, as he hold it to be, the present Ferman is a
"The party of second part (Swetambars) shall retain clever forgery, any similarity between the two scals
full controloftheirtemples,shrines. etc belonging would not be expected
to them." "In conclusion, I find that although the Fermans are बिहार सरकार: दिगम्बर समझौता spurious, both sccts have an ancient nght of worship
1966 मे बिहार सरकार ने दिगम्बरो के साथ भी समझौता The Swetambarindeaof exclusiveness appears tobe किया जिसमा स्पष्ट किया गया कादगम्बर अपन मादरापर कब्जा
tohe किया जिसमें स्पष्ट किया गया कि दिगम्बर अपने मदिरों पर कब्जा one of recent growth not older than charan case or रखेगे । the EKRAR
"The party of the second part (Digambars) shall बैनामे की सीमा जंगलात तक
retain full control of the temples, shrines .... etc.
belonging to them." श्वेताम्बरो का पर्वत खरीद का दावा कितना हास्यास्पद है पर्वतराज पर 20 टोके तीर्थकरो की और एक गौतम स्वामी कि उन्हे स्वय मालिक होने पर भी राजा को मोटी रकम देकर जगल की टोक पर प्राचीन दिगम्बरी चरणचिन्ह है जिसकी पुष्टि