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7 त्रिषष्टि शलाका पुरुष (आदीश्वर) चरित्र में राजा श्रेयाम वर्ष प्राचीन तो है ही। सम्राट अशोक द्वारा जारी राजाज्ञा के
द्वारा जनता को सम्बोधन से भगवान ऋषभ के नग्नत्व की शिलालेख (XX) मे निग्रंथों का उल्लेख है। पुष्टि होती है।
भगवान महावीर और उनके प्रारंभिक अनुयायियो की "जो भोगो का इच्छुक होता है, वह स्नान, अगराग और अत्यंत प्रसिद्ध वाह्य विशेषता थी-उनके नग्न रूप में विचरण करने वस्त्रों को स्वीकार करता है। स्वामी (ऋषभ) तो भोगो से की क्रिया, और इसी से दिगम्बर शब्द बना । इस क्रिया के विरुद्ध विरक्त है - उन्हे इनकी क्या आवश्यकता? अर्थात वे इन गौतम बुद्ध ने अपने शिष्यो को विशेष रूप से सावधान किया तीनो को ग्रहण नहीं करते ।"
था तथा प्रसिद्ध यूनानी मुहावरा-जिमनोसो-फिस्ट (जैन सूफी) से 'स्नानागराग नेपथ्य वस्त्राणि स्वीकरोति म ।
भी यही प्रगट होता है। मेगस्थनीज ने (जो चन्द्रगुप्त मौर्य के समय यो भोगेच्छ स्वामिनस्तु तद्विरक्तस्य कि हि तै' ||
ईसा पूर्व 320 में भारत आये थे) इस शब्द का प्रयोग किया पर्व--सर्ग 3 श्लोक 313 हा यह शब्द पूरी तरह निग्रों के लिए ही प्रयक्त हुआ है।
"The Jains are divided into two great parties -प्रकाशक श्री जैन धर्म प्रसारक सभा, भावनगर, स 1961
Digambars & Swetambars--the latter have only as श्वेताम्बर विद्वानों के अनुसार नग्नता की पुष्टि
yet been traced & that doubtfully as tar back as 5th
century AD after Christ, the former are ALMOST । जैन-आचार के पृष्ठ 153 पर डॉ मोहनलाल मेहता ने लिखा
CERTAINLY the saine as NIRGRANTHAS, who
are referred to in numerous passages of Buddhist Pali है 'चाहे कुछ भी हुआ हो, इतना निश्चित है कि महावीर Pitakas & must therefore be as old as 6th century BC प्रवज्या लेने के साथ ही अचेल अर्थात् नग्न हो गये तथा
The Nirgranthas are also referred to in one of the
ASOK's edicts (Corpus inscription plate XX) अत समय तक नग्न ही रहे एव किसी भी रूप में अपने शरीर
The most distinguishing outward peculiarity of के लिए वस्त्र का उपयोग नहीं किया ।'
Mahavira & his earliest followers was their practice
of going NAKED whence the term DIGAMBARA आगम और त्रिपिटक एक अनुशीलन मे मुनि नगराज पृ०
Against this custom Gautam Buddha especially 170 पर लिखते है कि शीत से त्रस्त होकर वे (महावीर) warned his followers, and it is referred to in the well बाहुओ को समेटते न थे, अपितु यथावत हाथ फैलाये विहार
known Greek phrase 'Gymnoso-phist', used already
hy Magasthenes which applies very aptly to करते थे । शिशिर ऋतु में पवन जोर से फुफकार मारता,
NIRGRANTHAS" कड़कड़ाती सर्दी होती, तब इतर साधु उससे बचने के लिए श्री एच एच विल्सन अपनी पुस्तक "एस्सेज एण्ड लैक्चर्म ऑन किसी गर्म स्थान की खोज करते, वस्त्र लपेटते और तापम दि रिलिजन आफ जैन्स' में लिखते हैलकड़ियाँ जलाकर शीत दूर करने का प्रयत्न करते, परन्तु जैन मख्यत दिगम्बर व श्वेताम्बर दो सैद्धातिक मान्यताओ महाबीर खुले स्थान मे नग्न बदन रहते और अपने बचाव
मे विभक्त है । इनमे दिगम्बर अधिक प्राचीन प्रतीत होते है और
किया की इच्छा भी नहीं करते निर्वस्त्र देह होने के कारण सर्दी
विस्तृत रूप मे फैले हुए है । दक्षिण के सभी जैन दिगम्बर समुदाय गर्मी के ही नहीं वे दशमशक तथा अन्य कोमल-कठोर स्पर्श
के जान पड़ते है । यही बात पश्चिमी भारत के जैनियो की बहुलता के अनेक कष्ट झेलते थे।
पर लागू होती है। हिन्दुओ के प्राचीन दर्शन ग्रन्यो मे जैनियो को उपरोक्त सभी श्वेताम्बर शास्त्रो के प्रमाणो से दिगम्बरत्व की नग्न अथवा दिगम्बर शब्द से संबोधित किया गया है। प्राचीनता सिद्ध होती है । अतः दिगम्बर धर्म ही प्राचीन है इसमे
"The Jains are divided into two principal divisions, सदेह की कोई गुजाइश ही नहीं है।
Digambars and Swetambars The former of which
appears to have the best pretensions to antiquity and विश्वमान्य ग्रन्थों के अनुसार भी दिगम्बर प्राचीन
to have been most widely diftused All the Deccan Jains appear to belong to the Digambara division So
11 15 said to the majority of Jains in western India In सदर्भ ग्रन्थ एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका खण्ड-25 ग्यारहवा
early philosophical writings of the Hindus, the सस्करण, सन् 1911 के अनुसार जैन दिगम्बर व श्वेताम्बर दो Jains are usually termed Digambars or Naganas
(Naked)." बड़े समुदायो मे विभक्त है । श्वेताम्बर अल्पकाल से बमुश्किल ईसा की पांचवीं शताब्दी से पाये जाते हैं जबकि दिगम्बर निश्चित दिगम्बर प्रतिमाओं की पूजा प्राचीनकाल से रूप से यही निग्रंथ हैं जिनका वर्णन बौद्धो की पाली पिटकों (धर्म एनसाईक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के खण्ड 10 पृष्ठ ।। सन् ग्रन्थों) के अनेक परिच्छेदों मे हुआ है और इसलिए वे ईसापूर्व 600 1981 के अनुसार मथुरा से तीर्थकरो की जो प्रतिमाए प्राप्त हुई