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से एक श्वेताम्बर ट्रस्ट और दूसरा दिगम्बर ट्रस्ट है । अत एक इस अध्यादेश से पर्वत के विकास का मार्ग प्रशस्त हो गया है | तीसरा सयुक्त बोर्ड, जिसमे श्वेताम्बर और दिगम्बर समान सख्या सभवत पर्वत के विकास की बात श्वेताम्बरो को रास नहीं आ मे हो, अनावश्यक है। यदि जैनो की सभी शाखाए मिलकर कोई रही है क्योकि वह तो पर्वत पर एकाधिकार रखना चाहते है । अस्पताल अथवा स्कूल चलाना चाहे तो उसका प्रबध ती जैनो के उन्हें डर है कि इस अध्यादेश से उनकी आय का स्रोत बद हो सभी सम्प्रदाय मिलकर करेगे । दिगम्बर या श्वेताम्बर अकेले-अकेले जाएगा । नहीं । इसलिए सयुक्त बोर्ड बनना सर्वथा उचित है।
बोर्ड से लाभ भूमिसुधार अधिनियम : स्वामित्व किसका?
जिस प्रकार आज देश के अनेक तीर्थो की कुव्यवस्था देखकर श्वेताम्बरी नेताओ ने रट लगा रखी है कि भूमिसुधार सरकार ने प्रबध बोर्ड बनाए है जैसे माताश्री वैष्णो देवी, नाथद्वारा, अधिनियम की परिधि मे पर्वत के जगलात नहीं आते है । इस
काशी विश्वनाथ, जगन्नाथपुरी । परिणाम सब के सामने है । इन विषय मे श्वेताम्बरो ने बिहार सरकार के खिलाफ गिरीडीह की
तीर्थो का इतना अच्छा विकास हुआ है कि देखते ही बनता अदालत मे जो वाद डाला था उसमें विद्धान न्यायाधीश ने 1990 है। इन वोर्डो का प्रबध तो सरकार ने अपने हाथ मे रखा है परन्त के अपने निर्णय में कहा है कि आनदजी कल्याणजी टस्ट के पर्वत श्री सम्मेद शिखरजी का प्रवध और मालिकाना हक तो सरकार मे मालिकाना अधिकार भूमि सुधार अधिनियम के अनुसार पूर्ण न जन समाज का सापा ह । फिर मिल जुलकर ताब का रूप से बिहार सरकार में समाहित हो गए है।
और विकास करने में हिचक क्यो ?
"Tauzi No 20/1 of Parasnath Hill belonging to $4 315 Anandji Kalyanji Trust Completely vested in the State of Bihar. Accordingly this issue is decided
___ श्वेताम्बरो का यह भ्रम अनुचित है कि विकास होने पर तीर्थ against the plaintiff (Swetambars)"
पिकनिक स्थल बन जाएगा। सरकार ने जिन तीर्थो पर विकास
बोर्ड बनाए है क्या वहा धार्मिक भावना में कमी आई है ? सच बिहार सरकार का अध्यादेश लोकतांत्रिक
तो यह है साधारण जनता इससे लाभान्वित हुई है । इसी प्रकार श्वेताम्बर बिहार सरकार के अध्यादेश को अलोकतात्रिक पारसनाथ पर्वत का विकास होने पर साधारण जनता को अधिक बताते है, जबकि बिहार सरकार का अध्यादेश पूर्ण रूप से विधाए मिलेगी और यात्रा सुगमता पूर्वक हो सकेगी । लोकतात्रिक है। अध्यादेश के अनुसार जैन समाज के सभी घटको
एक उचित परामर्श को श्री सम्मेद शिखर पर्वत की व्यवस्था मे समान भागीदारी ही ' प्रदान नहीं की गई है, बल्कि सरकार द्वारा अपने मालिकाना हक शिखरजी समस्या निवारण हेतु एक आदोलन ने जन्म ले भीजैन समाजको दिये गये हैं। यदि अध्यादेश में श्वेताम्बर समाज लिया है । अततोगत्वा जीत लोकतत्र की ही होती है। हमारी को समान हकन दिया गया होता, तब वह इसे अलोकतांत्रिक श्वेताम्बर समाज से अपेक्षा है कि इस विषय मे गम्भीरता से विचार कह सकते थे।
करे और तीर्थ के विकास मे बाधक न बन कर खुले दिल से दिगम्बर "The ownership and title of Shri Sammed Shikharji
समाज की बात को समझे। सामतवादी विचारधारा का त्याग कर (Parasnath Hil) and its endowment shall vest in समाजवादी नीति अपनाये । दिगम्बरो के इस आदोलन को दबाने Sammed Shikhari"
मे पाच करोड़ व्यय न करके इस धन को किसी रचनात्मक कार्य दुष्प्रचार या आभार
मे लगाए । जैन समाज बहुत छोटा सा है । आपसी सौहार्द के
बल पर यदि हम बड़े-बड़े कार्यो मे समय और धन का उपयोग श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सेठ आनन्दजी कल्याणजी ट्रस्ट इस
करे तो समाज और देश सभी का मगल होगा । भ्रामक दुष्प्रचार में लगा है कि बिहार सरकार ने इस अध्यादेश द्वारा जैनियो से पहाड़ छीन लिया है और भविष्य मे बिहार सरकार
सुभाष जैन, मत्री पहाड़ की मालिक होगी, जबकि वस्तुस्थिति इसके विपरीत है। सरकार ने अध्यादेश के अनुसार पहाड़ की व्यवस्था और मालिकाना
श्री सम्मेद शिखरजी आदोलन समिति हक समस्त जैन समाज को सौंप दिया है। इसलिए समस्त जैन
जैन वालाश्रम, दरियागज, नई दिल्ली-110002 समाज इस अध्यादेश के प्रति बिहार सरकार का ऋणी रहेगा।
दूरभाष 011-3285676-3277424