Book Title: Anekant 1994 Book 47 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 94
________________ हजारीबाग ने 311 1916 को अपने निर्णय में घोषित किया कि कुछ उदाहरण इस प्रकार है: श्वेताम्बरो का 20 तीर्थंकरो की और गौतम स्वामी की प्राचीन 1 यात्रा के मार्ग पर सरकार ने बिजली लगाने की अनुमति टोंकों पर एकाधिकार नहीं है। अतः दिगम्बरों के विरुद्ध कोई प्रदान कर दी थी परन्तु ट्रस्ट के विरोधस्वरूप बिजली नहीं इन्जन्कशन आदेश देकर उन्हे दर्शन-पूजन से नहीं रोका जा लगाई जा सकी । श्वेताम्बरो का कहना है कि पर्वत पर सकता। पटना उच्च न्यायालय और प्रिवी कौसिल ने इस आदेश बिजली लगाने से हिसा होगी । वैसे श्वेताम्बरो के हर तीर्थ की पुष्टि की। पर यहा तक कि शिखर जी के मदिरो मे भी बिजली लगी व्यावसायिक दृष्टिकोण है। संभवतः वह बिजली उनके विचार से अहिंसक है। 2 पर्वत और तलहटी मे यात्रियों की सुविधा के लिए पेय जल वस्तुस्थिति यह है कि सेठ आनन्दजी कल्याणजी की पैड़ी की लाइने बिछाने का इस ट्रस्ट ने तीव्र विरोध किया, जबकि अहमदाबाद मे एक फर्म थी । यह प्रमाण भी है कि शिखरजी तीर्थ उनके सभी तीर्थ स्थानो पर पानी की सप्लाई सुचारू है। की व्यवस्था उसी फर्म के सेठ आनन्दजी कल्याणजी ट्रस्ट के नाम सम्मेदाचल विकास समिति द्वारा पर्वत पर यात्रियो की से व्यापारिक प्रतिष्ठानो की तरह लाभ अर्जित करने के उद्देश्य । सुविधा के लिए बनाई जाने वाली सीढ़ियो और मार्ग के से हथियाये हुए है। ट्रस्ट का पजीकरण भी सेठ आनन्दजी कल्याणजी विकास को इस ट्रस्ट ने जबरन रुकवा दिया। उनका कहना फर्म के नाम से है। यह ट्रस्ट तीर्थ के पर्वतीय जगलो से मूल्यवान है रास्ता ठीक होने से तीर्थ पिकनिक स्थल बन जाएगा जबकि लकड़ी, दुलर्भ औषधिया और खनिज पदार्थ बेच कर करोड़ो रुपयो उनके तीर्थ पालीताना मे सड़क और सीढ़िया बनी हुई है का लाभ कमा रहा है, साथ ही चढ़ावे की खासी रकम भी उसको लेकिन सड़क-सीढ़ी बनने से वह स्थान धार्मिक ही रहा है, मिलती है । श्वेताम्बरी का कहना है कि पर्वत से बहुत कम आय पिकनिक स्थल नहीं बना । यात्रियों की सुविधार्थ रास्ते मे होती है, जबकि अखिल भारतीय श्वेताम्बर जैन कान्फेन्स ने धर्मशाला और मदिर बनाने का भी श्वेताम्बरी तीव्र विरोध 21794 को प्रकाशित लेख मे स्वीकार किया है कि 1982-83 कर रहे है जबकि इन विकास कार्यो मे धन सब दिगम्बगे मे रोहतास इडस्ट्रीज ने पर्वत के कुछ भाग का एक वर्ष के लिए का ही लग रहा है श्वेताम्बरो का नहीं । ठेका 16 लाख 27 हजार रुपयो मे लिया था । इतना ही नहीं एक और सामन्तवादी कदम श्वेताम्बरो को वन की आय के रूप में वन विभाग से 285 94 को बबई के गुजरात समाचार के अनुसार वहा 13,55,064,000 रू० सन 1984-85 तक के प्राप्त हुए थे। चहाण आडिटोरियम मे श्वेताम्बरो के तमाम सघो के 250प्रतिनिधियो आदिवासियों के विकास की जिम्मेटारी माली की बैठक में निर्णय लिया गया है कि दिगम्बरियो के शिवाजी आदोलन को कुचलने के लिए हर मुमकिन कोशिश की क्यो ? जाय । इस कार्य के लिए उसी समय पाच करोड़ रुपयो का फण्ड आखिर अनेक ससाधनो से होने वाली करोडो रुपयो की एकत्र करने की घोषणा की गयी । आनन्दजी कल्याणजी ट्रस्ट आय कहा जाती है, जब कि पर्वत के विकास और आदिवासी की ओर से ढाई करोड़, जैन संघ से 25 लाख, महडी तीर्थ सघ जनता के कल्यणार्थ ट्रस्ट की गतिविधिया शून्य है । श्वेताम्बगे। से 15 लाख एव अधिक आवश्यकता पड़ने पर 15 लाख और, का कहना है कि गरीब आदिवासियो के कल्याण की जिम्मेदारी दीपचन्द गार्डी की ओर से 11 लाख, श्रेणिक भाई से पाच लाख व अन्य प्रतिनिधियों द्वारा भी धन देने की घोषणा की गई। मात्र सरकार की है। इस तरह का तर्क ही उनकी सामन्तवादी विचारधारा की पुष्टि करता है । दिगम्बरो के आदोलन को कचलने के लिए श्वेताम्बर पाच करोड़ एकत्र कर सकते है, किन्तु पारमनाथ पर्वत के विकास मे विकास कार्यों की उपेक्षा उनका योगदान शून्य है क्योकि इस पर्वत पर मात्र आय करने हेतु ही कब्जा रखना उनका ध्येय है, उसके विकास मे उनकी कोई यह स्पष्ट है कि इस ट्रस्ट का दृष्टिकोण मूल रूप से दिलचस्पी नहीं है। व्यावसायिक रहा है । इसलिए बिहार सरकार अथवा मधुवन विकास समिति द्वारा विकास कार्यो मे यह ट्रस्ट सदैव बाधा खड़ी सयुक्त बाड आवश्यक करके उन्हें भी रुकवा देता है क्योकि यह ट्रस्ट पर्वत का तथाकथित श्वेताम्बरो का कहना है कि बिहार राज्य मे हिन्दू धार्मिक स्वामित्व व प्रबन्ध अपने कब्जे में ही रखना चाहता है | न्यास अधिनियम, 1950 के अतर्गत जैनो के दो ट्रस्ट बोर्ड है जिनमे

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