Book Title: Anekant 1994 Book 47 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 87
________________ श्री सम्मेद-शिखर-प्रसंग श्री सम्मेद शिखर जी मिद्ध क्षेत्र अनादि निधन तीर्थ है । यहाँ से २४ में से २० तीर्थ करों एवं असख्यात दिगम्बर मुनियों ने मोक्ष प्राप्त किया है इस लिए यह जैन धर्म के अनुयायियों को असीम श्रद्धा का पूज्यनीय स्थल है। पर्वत पर प्राचीन बीस तीर्थंकरों को टोकों और एक गणधर गौतमाचार्य की टोक में दिगम्बर मान्यता के चरण चिन्ह विराजमान हैं। शास्त्रो मे उल्लेख मिलता है कि ईसा पूर्व में भी यात्रीगण इस पर्वत की वन्दना को आते थे। कुन्दकुन्द आयं ने निर्वाण्ड मे श्री सम्मेद शिखरजी को वन्दना को है। बीसं तु जिणवरिदा अमरासुरवंदिदाधुद कलेसा । समंदे गिरि सिहरे णिव्वाण गया णमोसि ।।' अर्थात्--"f .. सिमेद जिनेश्वर बोस । भाव सहित बन्दों निशि-दीस ।। यह भी उल्लेख मिलता है कि श्रोणिक राजा ने पर्वत की टोकों का जीर्णोद्धार कराया था। इसके बाद नान ने भो टोकों का जीर्णोद्धार कराया था। मुर्शिदाबाद को जैन समाज द्वारा टोको के जीर्णोद्धार का उल्लेख मिलता है। ___ वतमान में कुछ दातारों ने जीर्णोद्धार के नाम पर टोकों की प्राचोनता विल्युल नष्ट करने का प्रयत्न किया है । क्षेत्रको प्राचीनता को नष्ट करना किसी भी दृष्टि से सही नहीं माना जा सकता बल्कि इस कृत्य की जितनी भी भर्त्सना की जाय कम है। ऐसा प्रतीत होता है कि एक वर्ग विशेष जो तीर्थ पर अनधिकृत ब्जा लिए हुए है उपका ही यह घिनोना कृत्य है। प्राचीन साक्षियों, न्यायालयों के निर्णयों से स्पष्ट है कि यह जघन्य अपराध क्षन्ध नहीं है। पर्वत की तलाटो मधुबन में दिगम्बर जैनों की बीस पंथी कोठो का निःणि आज से चार सौ से भी :धिक वर्ष पूर्व हुआ था जबकि श्वेताम्बर कोठी उसके २५० वर्ष बाद बनी है हम यहां श्वेताम्बर आगमों, विश्व मान्यग्रन्यो और अदालती फैसलों आदि के आधार पर श्री सुभाष जैन का लेख प्रकाशित कर रहे हैं ताकि समाज में किसो भी प्रकार को भ्रान्ति न रहे और वह वस्तु स्थिति से अवगत हो। हम इस तथ्यपूर्ण खोज के लिए श्री सुभाष जी के अथकधम की सराहना करते है कि उन्होने भ्रम का पर्दा हटाने का अपूर्व कार्य किया है । -सम्पादक

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