Book Title: Anekant 1994 Book 47 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
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परमागमत्य बीज निपजात्यन्धासन्धुरावधानम् । सफलनविलसिताना विरोधमयन नमाम्यनेकान्तम् ।।
वर्ष ४७ किरण ३
वोर-सेवा मन्दिर, २१ दरियागंज, नई fhoni-२
वीर-निर्वाण सवत् २५२०, वि०म० २०५१
-सितम्बर १६६४
ऐसा मोही क्यों न अधोगति जावे ?
ऐसा मोहो क्यों न अधोगति जावे,
जाको जिनवाणी न सुहावै ॥ वीतराग सा देव छोड़ कर, देव-कुदेव मनाव। कल्पलता, दयालता ताज, हिंसा इन्द्रासन बाव॥ ऐसा० ॥ रुचे न गुरु निर्ग्रन्थ भेष बहु, परिग्रही गुरु मावे । पर-धन पर-तिय को अभिलाषं, अशन अशोधित खाव ॥ ऐसा० ॥ पर को विभव देख दुख होई, पर दुख देख लहावे । धर्म हेतु इक दाम न खरचं, उपवन लक्ष बहावे ॥ ऐसा० ॥ ज्यों गह मे सं ये बहु अंध, त्यों वन हू में उपजावै । अम्बर त्याग कहाय दिगम्बर, बाघम्बर तन छावै ।। ऐमा० ॥ आरंभ तज शठ यंत्र-मंत्र करि, जनप पूज्य कहावै । धाम-धाम तज दासो राख, बाहर मढ़ी बनावै । ऐसा.॥

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