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२६, वर्ष ४७, कि० २
अनेकान्त बोधा अनेक शब्दो का प्रयोग किया जैसे होदि, होइ, सम्पादकगण एवं संस्थायें विद्वत परिषद की भावनाओ का हवइ, हदि, हवेई आदि । यह शब्द आध आध्यात्मिक महत्व समझकर आगम/मार्ष-ग्रन्थो को विकृत होने से कवि एव चिार्य न्दवन्द की रचनामी में प्रयोग किा बचाने में सहयोग देगे। गये हैं। हाल ही में कुन्द भारती दिल्ली द्वाराचाय "वर्तमान काल में मल आगम ग्रन्थों के सम्पादन एवं कुन्दकुन्द को वन ओ का प्रकाशन किया गया है जिसमे प्रकाशन के नाम पर ग्रन्थकारों को मल गाथाओ मे परिमम्पादन एवं व्याकरण की शुद्धि नाम पर मल गाथाओ वतन एवं सशोधन किया जा रहा है जो भागम की मे मगोधन/परिवतन किया है। यह कार्य किमी भी दष्टि- प्रमाणिकता, मौलिकना एवं प्राचीनता को नष्ट करता कोण मे चि- नही है। प्राच्य रित्य व इनिहाम की है। विश्वमान्य प्रकाशन संहिता में व्याकरण अन्य दष्टि में यह कयं अप घरी जावेगा।
किमी प्राधार पर मात्रा, प्रक्षर आदि के परिवर्तन को भी गतान भबार में मोई धर्मग्रन्थ नही लिखा/ मल का घातो माना जाता है। इस प्रकार के प्रयासो से लिगवाया । ग धर, अ'च यं पगप से हमे धर्म साहित्य अन्धकार द्वारा उपयोग की गयी भाषा की प्राचीनता का विरासत में लिया। मे यथावन शुद बना रखा लोप होकर भाषा के ऐतिहामिक चिह्न लुप्त होते है। जैन समाज औ. रमन नागकी का कर्तव्य । अनाव आगम/आर्ष ग्रन्थो की मौलिकता बनाये रखने के
कृगनगरीप, राम धर्म का मनधर्म पन्थ है। उद्देष मे अ. भा. दि. जैन विद्वत परिषद विद्वानो, इमकी आय को पाने परत मोम्म . साहब। मम्पादको, प्रकाशको एक उन ज्ञात-अज्ञात महयोगियो से माध्यम में उतरी थी बसला अनुवाद उर्दू व अन्य साग्रह अनुरोध करती है कि वे आचार्यकृत मूलमन्थो मे भाषाओ मे दिया गया। चौदह सौ ६ को नम्बो यात्रा भाषा, भाव एव अर्थ-सुधार के नाम पर किसी भी प्रकार मे अभी न : कुरान शरीफ में एक नुस्ते का भी हेरफेर का फेरबदल न करें। यदि कोई संशोधन/परिवर्तन माय नही हआ। कगन शेफ गाण की दृष्टि से परिपूर्ण श्यक समझा जाये तो उसे पाद-टिप्पण के रूप में ही रचना है या नही, यह प्रश्न म.न्तपूर्ण नही है। प्रश्न दशांपा जाय ताकि आदर्श मौलिक कृति की गाथायें धर्मग्रा की विTIT के पाग क..:ोविणाल यगावन ही बनी रहे और किमी महानुभाव को यह कहने मग्लिम समाज के हदयो में विधान है। हम गौतन का अवमर न मिले कि भगवान महावीर स्वामी
लेकर आगामी आचार्य परम्पराको प्रमाणिता निर्वाण के ५०० वर्ष उपरान्त उत्पन्न जागरूकता के की नमरते नही पाते किन्तु उनके द्वारा रचित धर्म- बाद भी मल आगमो मे सशोधन किया गया है।" गयोबा माविक छिद्रान्वेषण करने में भी नहीं प्राचीन मतियों का जीर्णोद्वार एवं गजरथ महोत्सव: चकते। - 01: कि हम अपने को आचार्यों मे देवदर्शन थावकों की दैनिक आवश्यकता है। इस अधिक श्रेष्ट-द्वान सिद्ध करने तु उनी प्राचीन रहश्य हेतु जिन-मन्दिरों का निर्माण किया गया/किया रचनामा रण को शुद्धि के नाम पर परिवर्तन/ जाता है। मदिर निर्माण के साथ पचकल्याणक प्रतिष्ठा सशोधन मदत के बाहर जाकर कर रहे है । साहित्य समारोह भी होग है। हाल ही एक दशक से त्यागी वर्ग शटिकरा के मे प्रयोग किसी भी क्षेत्र में नही किर के कुछ महानभवी को ऐसी धून सवार हो गयी है कि वे गये। अखल भारतवर्षीय विद्वत परिषद का ध्यान इस जीर्णोद्वार के नाम पर अतिप्राचीन कलात्मक मूर्तियों को महत्वपूर्ण प्रकरण की ओर गया और उसने अप: खरई छनी-हथोड़े से तराश कर विकृत/बेमेल बनाकर उनकी अधिवेशन मे दि. 1क २८-६-६३ को निम्न प्रस्ताव स्वीकृत प्रतिष्ठा करवा रहे हैं । यवनो के विनाश से जो कुछ बचा कर प्रकाशको एव लेखको मे अनुरोध किया है कि वे था, उसका विनाश अब हमारे ही हाथो हो रहा है। पार्ष-ग्रन्थो मे संशोधन करने से विरत रहे । प्रस्ताव भोली-भाली जनता इन सब बारीकियों एवं उनके महाय निम्न प्रकार विश्वास है कि जैन समाज के विद्वान, को नही समान पाती त्यागियो को प्रमाणिक मापकर