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मी भूषन साहु
के शासन काल मे बैशाख शुक्ला तृतीया सोमवार अक्षय (मास्त्र आगम) के रूप मे लोग सुनते रहेगे तब तक श्री ततीया के दिन श्री भपण श्रेष्ठी ने वृषभनाथ के जिना- भूषण श्रेष्ठी को यह यशोगाथा पृथ्वी तल पर चिरकाल लय में भगवान ऋषभदेव के जिनविम्ब की प्रतिष्ठा तक गाई जाती रहेगी ।.३०॥ कराई थी। यह ऋषभ नाथ का जिनालय स्थली देश के
विज्ञानिक सूमाक ने इस प्रशस्ति को शिलापट्ट पर उत्थ (च्छणक नगर में था ॥२५-२६।।
उत्कीर्ण किया। मगल हो, महा श्री: इस शिलालेख के प्रयम तथा चौथे से अठारहवें श्लोक नक के कुल सोलह श्लोक श्री कट क नामक विद्वान ने रचे नोट:-प्राय: आशीर्वचनो मे लिखा जाता रहा है कि थे। शेष १४ छद भाइल वशीधी सावड ब्राह्मण के पुत्र
"यावद्गङ्गा च गोदा च" "यावरचन्द्र दिवाकरौ" श्री भादुक ने रचे थे ॥२७-२८॥
आदि आदि पर इस प्रशस्ति के आशीर्वचनात्मक उस समय यहां बालम वशी राजपाल कायस्थ के पुत्र
पद मे जो विशेषण प्रयुक्त हुए हैं वे अपने आप में श्री वासव उस राज्य सधि विग्रहक अधिकारी थे। उन्होंने
अनूठे हैं तथा कहीं पढ़े सुने भी नहीं गये। इस उस शिलालेख को अधिकारिक रूप से लिखा था अर्थात्
सम्पूर्ण प्रशस्ति मे स्थली (राजस्थान) तथा विष्णरजिस्टर्ड किया था ॥२६॥
पदी (गङ्गा) शब्द ऐसे अप्रचलित संस्कृत शब्द है आशीर्वचन-जब तक पृथ्वी पर राम रावण का
जिनका प्रयोग सामान्यत: अन्यत्र कम उपलब्ध
होता है। चरित्र लोग बखान करते रहेगे, जब तक गङ्गा (विष्णुपदी) मे जल बहता रहेगा, आकाश में चन्द्रमा विद्यमान रहेगा
श्रुत कुटीर, ६८, विश्वास नगर तथा श्रमणों द्वारा उपदिष्ट अरहन्त के वाक्यो को श्रुत
शाहदरा दिल्ली-३२
भावेण होइ णग्गो बाहिर लिगेण किं च णग्गेण । कम्मपयडीण णियरं णास भावेण ॥ जग्गत्तणं अकजं भावणरहियं जिणेहि पण्णतं । इय गाऊण य णिच्च माविजहि अप्पयं धौर ॥
-भाव पाहुड ५४-५५ __ भाव से नग्न होता है, केवल बाहिरी नग्न वेष से क्या लाभ है ? भाव सहित द्रव्यलिंग होने पर कर्मप्रकृति के समूह का नाश होता है, मात्र द्रव्य के होने पर नहीं । भाव रहित नग्नपना कार्यकारी नहीं है, ऐसा जिनेन्द्र ने कहा है। ऐसा जानकर हे धीर, सदा आत्मा का चिन्तन कर ।