________________
१२,
४७, कि.२
अनेकान्त
नफरत के कारण उत्पन्न हआ है तथा धर्म निरपेक्षता की तत्व तथाकथित आधुनिक सभ्यता के अंग है। आधुनिक भाड़ में पनप रहा है।
सभ्यता मे से यदि ये तीनों तत्व निकाल दिये जावें तो न एक समय था जब समग्र भारतीय जनजीवन तो आधुनिकता रहेगी और न ही उस आधुनिकता के आध्यात्मिकता से अनुप्राणित था जिससे प्रत्येक देशवासी परिवेश में लिपटी हुई तथाकथित सभ्यता रहेगी। चाहे वह सत्तासीन हो या साधारण नागरिक हो, नैतिकता
यह एक सुज्ञात तथ्य है कि जहां भौतिकता का के सामान्य नियमो से बंधा हुआ था। समाज और राष्ट्र
साम्राज्य है, वहा आध्यात्मिकता का टिकना सभव नही के प्रति वह अपने कर्तव्यबोध से युक्त और उसके निर्वाह
है। यही कारण है कि भारतीय जनजीवन मे शनैः शनै: के लिए जागरूक एव तत्पर था। किन्तु आज भारतीय
आध्यात्मिकता का ह्रास होता जा रहा है । इस स्थिति जनमानस से बाध्यात्मिकता का भाव तिरोहित हो गया
मे मानवीय आचरण को प्रभावित कर उसे इतना हीनहै और भौतिकवादी विचारधारा के बीज तीव्रगति से
स्तरीय बना दिया है कि उच्चतम आदर्शों एवं मूल्यो की अंकुरित होकर सम्पूर्ण जीवन शैली में इस प्रकार व्याप्त
कल्पना मात्र स्वप्न बनकर रह गई है । आधुनिक मानव हो गए हैं कि उन्होने सभी जीवन मूल्वो का ह्रास कर
समाज अपने आपको अधिक सुसस्कृत और सभ्य मानता उन्हें बदल दिया है। भारतीय जन जीवन मे आध्या
है, क्योकि उसके रहन-सहन और आचरण में व्यापक स्मिकता के स्थान पर भौतिकवादी विचारों का प्रभाव
परिवर्तन आ गया है। वह अपने रहन-सहन और आचरण स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रहा है। इसके साथ ही देश
को अधिक उन्नत अनुभव करता है। उसके आहार और की वर्तमान धर्म निरपेक्ष नीति को जो राजनैतिक रंग
व्यवहार में होते जा रहे परिवर्तनों ने शुद्धता और दिया गया है उसके कारण उत्पन्न प्रान्त धारणा ने केवल
अशुद्धता के विवेक को एक ओर रख दिया है और ४५ वर्ष के अल्पकाल मे ही भारतीय जनजीवन मे
शिथिलाचार को पर्याप्त प्रोत्साहन दिया है । मनुष्य के नैतिकता और सदाचार का जो अवमूल्यन किया है आज
आचरण, आहार और व्यवहार में आए शिथि लाचार ने वह हमारे समक्ष विचारणीय है।
एक ओर तो उसके नैतिक मूल्यो का ह्रास किया है, प्राधुनिक विलासितापूर्ण भौतिक वातावरण ने साथ ही, दूसरी आडम्बरपूर्ण दिखावटी सभ्यता को जन्म भारतीय समाज को जिस प्रकार आक्रान्त कर उसे देकर स्वय को सभ्य एवं सुसम्कृत कहलाने का प्रयत्न दूषित और प्राडम्बरपूर्ण बनाया है, वह सुविदित है। किया है । आज सम्पूर्ण समाज मे इसी दिखावटी, आडंबर इस प्रगतिशील कहे जाने वाले आधुनिक वातावरण ने पूर्ण एवं कृत्रिम मभ्यता का प्रमार एव प्रचार व्यापक रूप भारतीय संस्कृति की गौरवमयी परम्परा को जिस प्रकार से है। छिन्न-भिन्न कर भारतीय जनजीवन से उसे पृथक करने
___ वस्तुतः प्राधुनिकता सर्पनिर्मोक की भाति एक का प्रयास किया है, वह भी आज हमारे सम्मुख बिल्कुल
आचरण है, जिसमे आज सम्पूर्ण विश्व आवेष्ठित है। यह स्पष्ट है। आधुनिकता के नाम पर आज समाज मे जो
एक ऐमा आवरण है, जिसने हमारे सभ्यता, संस्कृति,
bur आवण जिम मीठा जहर घोला जा रहा है, उमसे भला आज कौनसा रीति-रिवाज, सामाजिक स्थिति, धामिक सस्कार, रहनपरिवार अछुता है। आधुनिकता का विष भारतीय समाज महन, खान-पान आदि को बुरी तरह अपने शिकजे मे मे इस द्रुतगति से फैला है कि अत्यल्प समय में ही उम जकड़ रखा है। कोई गलत काम हो, कोई बुरी आदत अपना प्रभाव दिखाना प्रारम्भ कर दिया है । आधुनिकता हो, कोई बुरा पहनावा हो, किसी भी तरह की कोई की बाड़ मे हमारे समाज में एक ऐसी सभ्यता ने जन्म बुराई हो, आधुनिकता के आवरण मे सब आकर्षक और लिया है, जो यथार्थ के धरातल से हटकर कृत्रिमता, सह्य मानी जाती है । आधुनिकता को इस व्यापकता से आसम्बर दिखावे की तिपाई पर टिकी हुई है। ये तीनो जहां जीवन का कोई पहल अछूता नही रहा है, वहा भला