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आधुनिक संदर्भ में आचरण की शुद्धता
- आचार्य राजकुमार जैन
समाज और देश के विकास, प्रगति और समृद्धि के पूर्ति का साधन बनाया जा रहा है । जो धर्म अन्त.करण लिए इकाई के रूप मे जनसामान्य को भागीदारी सर्वाधिक और भावना से जुड़ा रहना चाहिए उसे आज वहां में महत्वपूर्व है । उसकी मनोवृत्ति, प्राचरण और नैतिकता निकाल कर बाह्याडम्बर के आवरण मे लपेट कर प्रस्तुत समाज के निर्माण को जो दिशा प्रदान करती है उसी में किया जा रहा है। धर्म के नाम पर आजकल जो कुछ उमका स्वरूप और ढांचा स्थिर होता है। आज देश मे भी किया जा रहा है वह धर्माकरण नही, धर्माचरण के समाज की जो स्थिति है उसे उत्साहजनक नही माना जा विरुद्ध है।। सकता । गत कुछ वर्षों की तुलना मे समाज के स्वरूप मे समाज मे एक ऐना वर्ग भी आजकल पनप रश है जा जो बदलाव आया है उसे भले ही आधुनिकतावादी धर्म की माड लेकर समाज में नफरत और वैमनस्य के समस्कृत और प्रगतिशील मानें किन्तु देश के लिए किसी बीज पैदा कर रहा है। लोगो मे धार्मिक भावनाए भडका भी रूप में उसकी प्रासंगिकता तब तक रेखाकित नहीं की कर अपनी स्वार्थ पूर्ति करना ही उनका मुख्य उद्देश्य है। जा सकती जब तक देश के सर्वागीण विकास में उसका माग समान
ऐसे मुटी भर लोग समाज के सम्पूर्ण वातावरण को न पूर्ण योगदान न हो।
केवन जगात कर रहे है, वरन उसमे अराजकता की ___ आज समाज का जो स्वरूप हमारे सम्मुख है वह स्थिति पैदा कर रहे है । सम्भवन. यही कारण है कि पूर्णतः स्वस्थ नहीं कहा जा सकता । आधुनिकता का सहिष्ण मसाज धीरे-धीरे जमहिष्णु होना जा रहा है। आचरण जिस प्रकार उसे घेरता जा रहा उससे उसम एक ही मान अब धर्म के आधार पर विभाजित हो रहा फैशनपरस्ती, कृत्रिमता (बनावटीपन), दिखावा और है और उनमे सौमनस्य एवं भावनात्मक एकता के स्थान आरम्बर की प्रवृत्ति को विशेष रूप से प्रोत्साहन मिला पर साम्प्रदायिकता की भावना पनप ही है। उदारताहै। परिणामत. उसकी परमारात्री सस्कृति और सभ्यता वादी दृष्टिकोण वीरे-धीरे लुप्त होता जा रहा है। मेर्याप्त बदलाव आया है। लोगो मे दूसरो की परवाह अनैतिक और अलगाववादी तत्वो के द्वारा जब भडकाने न कर आग बढ़ने की प्रतिमन्द्वता तेजी से पनप रही है। वाली स्थिति उत्पन्न की जाती है तो लोगो में विरोध अपरे यहा विलासिता के आधुनिकतम साधन अधिक-से- और ईष्या की आग को फैलाने के लि! वातावरण तैयार अधिक एकत्र करने मे लोग किसी से पीछे नहीं रहना किया जाता है और उनकी धार्मिक भावनाओ को उकसा चाहते । उसके लिए चाहे उन्हें कोई भी उल्टे सोधे तरीके कर उनसे खिलवाड़ किया जाता है। अन्तत: समाज के क्यो न अपनाने पड़ें। यही बजह है कि आज लोग निरोह और बेकसूर लोगों को उसदा शिकार होना पड़ता भावनात्मक रूप से समाज से उस प्रकार नही जुड़े है जिस है। धर्म के नाम पर की जाने वाली आडम्बरपूर्ण प्रकार जुड़े रहना चाहिए था या पहले जुड़े रहते थे। प्रवृत्तियो की परिणति अन्ततः विद्वेष, ईष्या और हिंसा मे इसका एक परिणाम यह हुआ कि लोगों मे धार्मिक भावना होती है जिसका परिणाम निरपराध लोगों को भगतना का शन. शन. लोप होता जा रहा है। धर्म भी आजकल पड़ता है।। भावना और मन से जुड़ा हुआ नही लगता है, उसे भी प्रगनिशील कहे जाने वाले वर्तमान वैज्ञानिक एवं भाडम्बर और दिखाया का माध्यम बनाकर अपनो स्वार्थ भोतिकवादी युग में प्राज मनुष्य की प्रवृत्तियां अन्तर्मखी न