________________
भी भूषण साह शिला लेख की रजिस्ट्री बालम वंशी राजपाल कायस्थ के सुन्दर जिनालय था जिसकी वजाओं के विस्तार ने सूर्य पत्र सन्धिविग्रहिक मंत्री वासव ने की थी। आजकल के भगवान की किरणो के प्रसार को भी रोक लिया था ॥४॥ रजिस्ट्रेशन की भांति प्राचीन काल मे भी ऐसे लेखोकी
इस तलपाट क नगर मे नागर वंश के मधंन्य, समस्त प्रामाणिकता के लिए शासकीय अधिकारियो द्वारा लिपि
__शास्त्र ज्ञान के मगर तथा जिनकी अस्थि मज्जा जिनागम बद्ध कराया जाता था। इससे ज्ञात होता है कि श्री वासव
की अभिलाषा रूपी रमामत से परिपूर्ण थी ऐसे अम्बर तत्कालीन प्रतिष्ठित पुरुष थे और कायस्थ होते हुए भी
नाम + श्रेष्ठतम वैद्यराज थे, जिन्होंने सद्गृहस्थ होते हुए जैनधर्म के प्रति विशिष्ट अनुरागी थे। बैशाख शुक्ला
भी इन्द्रियो पर पूर्ण नियन्त्रण कर रखा था, पापो मे रहित तृतीया सोमवार संवत् ११६६ को राजभेष्ठी श्री भषण
पूर्ण सयमी तथा गहम्थ के बारह व्रतो (देश व्रत, अणुव्रत, साह द्वारा निर्मित इस विशाल जिनालय मे भगवान
शिक्षा व्रतादि) से अलकत थे। जो पट आवश्यक कर्मों का ऋषभदेव के जिनविम्ब की प्रतिष्ठा कराई थी। इस समय
निष्ठा पूर्वक पालन ; ते थे, उन्होंने एकान वन प्रान्त मे उत्थ(च्छू )गक पुर मे परमार वंशी महाराज विजयराज
अन्तवासि (प्रिव्य) की भानि अननिबद्ध होफर चक्रेश्वरी का राज्य था जो चामुण्डराज के पुत्र तथा माण्डलीक के
देवी की उपासना को तवा गंगी की भाति अनन्य भाव प्रपौत्र थे । अब हम पुरे शिलालेख का हिन्दी रूपान्तण
से देवी की सेवा की। अत: उनको इम असाधारण भक्ति प्रत्येक श्लो क्रमसे प्रस्तुत कर रहे हैं :
और श्रेष्ठ गुणो के कारण चक्रेश्वरी देवी को उन पर कृपा सर्व प्रथम 'ॐ नमो वीतरागाय' अति वीतराः
हुई और उन्होंने देवी की सिद्धि प्राप्त की ॥५-६।। प्रभु को नमस्कार के बाद प्रथम श्लोक मे जिनेन्द्र प्रभ की। वदना की गई है। वे जिन प्रभ जयवंत हों जो भग जन
इन नम्बर वैद्य गज के पाक नाम का पुत्र उत्पन्न रूपी कमल राशि के लिए मर्य तुल्य है, जिन्होंने लागेको हुन जो भर पुरुषो को अनेक मानन्द का दाता या, जो ज्ञान का प्रकाश देकर उन्हे पूर्ण विक मित कर दिया है, मल बुद्धि का धारक था, सम्पूर्ण शास्त्र ज्ञान का पारजिनके समक्ष परवादी रूपी अधकार क्षणभर को भी नही दशा था, मम्पूर्ण आयुर्वेद का ज्ञाता था तथा दयालता टिक पाता है, तथा चचल कूवादी रूपी जगन क्षणभर में पूर्वक समी रोगो से प्राक्रान्त लोगो का निदान जान उन्हे विलीन हो जाते है ऐसे जिनेन्द्र भगवान जयवत हो ॥१॥ नीरोग करता था ऐसे पापाक वैद्य के आलोक, साहस
हा उच्छ (त्थ )णक पुर में परमार वशी राजा श्री भद. और लल्लुक नाम के तीन पुत्र उत्पन्न हए जो सम्पूर्ण लीक नाम से विख्यात थे जिन्होने कन्ह और मिन्धराज शाहक पारगत एव पारखी थे ॥७-८॥ जैसे सेनापतियों का विनाश किया था, इनके पुत्र चामड- इनमे से ज्येष्ठ पुत्र आलोक महज रूप से विशुद्ध एव गय ने या आनी कोतिपताका लहराई थी तथा
विशद बुद्धि मे सुशोभित था, जिमने अपनी आन्तरिक
विपद बति में पति था जिसे या स्थली देश (गजस्थान) मे अवन्ति (उज्जयनी) प्रभु के दष्टि से मपण इतिहास और नवजात के मा को सभी साधनो को नष्ट कर विनाश किया था इनक पुः स्फूरित किया था, तथा संवेगादि गुणो से अपने सम्यक विजयराज जयवत हो, जिन्होंने अपना या समारम प्रभाव को व्यक्त करने वाला था, तया अपने धन का प्रसारित किया था, वे सौभाग्यशाली थे, उन्होंने शत्रु सम्पात्रो को दानादि प्रवृत्तियो में उपयोग किया करता था, समूह को जीत लिया था, वे गुणरूपी रलो को सागर को तथा अपनी कुल परम्परा के अनुमार ममस्त साधुवर्ग की भाति धारण किया करते थे तथा बे शूरवीर और बल- मेवा मे तल्लीन रहता था, तथा समस्त जनता को आल्हाद शाली थे॥२-३॥
करने वाले उत्तम शील स्वताव को धारण करने वाला इस स्थली (राजस्थान) देश में तलपाटक नाम का था तया यतियो, धैर्यवानो, विद्वानों आदि के भार को एक श्रेष्ठ नगर था, जिसकी ललनाओ ने देवांगनाओ के आनन्द पूर्वक धारण करते हुए वह आलोक माह योगी सौन्दर्य से भी अधिक सुन्दरता पाई थी। यहां एक विशाल और भोगी के स्वरूप को एक साथ ही धारण करने वाला