Book Title: Anekant 1994 Book 47 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 41
________________ अनेकान्त/४० जो भी हो, हम अपनी बात पर दृढ है-हमारे आगमो की परम्परित मूल भाषा जैन शौरसेनी है और भाषा की अनेक रूपता के कारण, सभी प्राकृत-आगमो के सभी मूलशब्द सभी जगह प्रामाणिक है और भाषा मे एक रूपता नहीं है। यदि मूलभाषा बदली जाती है तो आगमो की प्रमाणिकता सदेह मे आने से दिगम्बरत्व की प्राचीनता भी सदेह के घेरे मे आने से अछती नही बचेगी। क्योकि आगम की प्रामाणिकता से ही दिगम्बरत्व की प्रामाणिकता एव प्राचीनता सिद्ध है-जब मूल आगम ही अशुद्ध और बदलता रहा हो, तब दिगम्बरत्व और उसकी प्राचीनता ही कहॉ? स्मरण रहे-धर्म-पथ आगमाश्रित होता है। आगम बदला नही जाता । उदाहरणार्थ वेद हमारे समक्ष है-जिनमे किसी ने बदल का प्रयत्न नही किया और पाणिनीय को तदनुसार स्वर वैदिकी प्रक्रिया की अलग से रचना करनी पडी। हमे संदेह है कि शिखर जी के झगडे की भांति इसी प्रसंग में आगम की प्रामाणिकता-अप्रामाणिकता का एक नया बखेड़ा और ना उठ खडा हो। शौरसेनी मात्र को प्रश्रय देने से और भी बहुत से कटु-प्रसग उठ सकते है ? -सम्पादक श्री सम्मेद शिखरजी (पारसनाथ पर्वत) दिगम्बर जैन समाज की आस्था का पवित्रतम तीर्थ है । इस तीर्थ की रक्षा हेतु प्रत्येक दिगम्बर जैन का सक्रिय सहयोग आवश्यक हैं। तीर्थ के विकास हेतु दिल खोल कर दान देना हमारा परम कर्तव्य हैं। दिगम्बर जैन समाज की एकता और समर्पण भावना से ही हम अपने आन्दोलन में सफल होगे। -सुभाष जैन मंत्री श्री सम्मेद शिखरजी आन्दोलन समिति जैन बालाश्रम, दरिया गज नई दिल्ली-११०००२

Loading...

Page Navigation
1 ... 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120