Book Title: Anekant 1994 Book 47 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 38
________________ अनेकान्त/३७ "हवा को तरसता मानव" हवा, पानी, प्रकृति की ऐसी अनुपम देन है जिसके बिना कोई प्राणी जीवित नही रह सकता। ___ आज हमने अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर दोनो को ही विकृत कर दिया। जिस देश मे गगा, जमुना नर्मदा जैसी पवित्र नदियाँ अमृत जल प्रदान करती थी उनको गदगी से भरे सरोवर व गदे नाले की स्थिति मे पहुँचा दिया। जो मद सुगन्धित बयार हमारे फेफडो को जीवन देती थी उसी हवा को प्राण-घातक गैसो से दुर्गन्धित कर दिया । जहाँ वन-उपवनो मे वृक्ष लहलहाते थे, पुष्प प्रफुल्लित होकर हर्षाते थे, पक्षी चहचहाते थे, वहाँ सूखे जगल बनादिए और अभी भी हमारी भोगो की तृष्णा शात नही आज से ४८ साल पहले जब पराधीनता से जकडी भारत मॉ अग्रेजी शासन से मुक्त हुई, लोकमान्य तिलक, सरदार पटेल, महात्मा गाँधी जैसी महान् आत्माओ ने देश-हितार्थ स्वदेशी का नारा दिया, विदेशी का बहिष्कार किया। जीवनदायिनी गौ माता की रक्षा, शाति सुख के प्रतीक राम-राज्य की कल्पना दी। समस्त भारत मे चेतना आई, विदेशी सत्ता को भारत से भागना पडा । १५ अगस्त की वह शुभ घडी जब श्री सुभाष चन्द्र बोस का स्वप्न साकार हुआ, श्री जवाहर लाल नेहरू ने भारत की राजधानी देहली के लालकिले से स्वतन्त्रता का जयघोष किया, यूनियन जैक नीचे उतरा, जन-मन की आशाओ का प्रतीक तिरगा आकाश मे लहराया । सोचा था भारत सोने की चिडिया पुन प्रफुल्लित होगा, प्राणीमात्र को प्यार मिलेगा, भोजन मिलेगा, घर मिलेगा, खेत हरे-भरे, खलिहान अनाज से पूर्ण होगे, नदियो मेप्रासुक जल होगा, वृक्षो से सुशोभित गुरूकुलो मे विद्यार्थी विद्याध्ययन कर भावी भारत के कर्णधार होगे। विश्व में भारत अद्वितीय देश है जिसमे प्रकृति ने रामस्त प्रकार के अन्न स्वास्थ्यवर्धक फल-फूल मेवे स्वादिष्ट मिर्चमसाले, औषधियॉ, खनिज धातुऐ, सोना चॉदी, रत्न हीरे-जवाहरात सब प्राप्त है। ना कुछ बाहर से मॅगवाने की आवश्यकता ना बाहर भेजने की चिन्ता । महात्मा गाँधी जी ने विदेशी वस्त्रो की होली जलवा दी कहने लगे “ना हागा बॉस ना बजेगी बॉसुरी" विदेशी वस्त्रो की उपस्थिति मे उनसे माह बना रहेगा, स्वदेशी नही अपनाऐगे जन-जन से चर्खा चलवा दिया, छोटे-बडे की भावना से दूर खददर से शरीर सजवा दिया। नहीं पता था हमारे ग्रन इस प्रकार चकना चूर हो जाएंगे। ४५ वर्ष मे तीन पीही समाप्त हो गई दर्द बढ़ता गया ज्यो-ज्यो नवा की। उस समय का वालक वृद्ध हो गया नौजवान मृत्यु की गोद में सो गया, भारतीयता की बजाय घर--घर में विदेशी

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