Book Title: Anekant 1994 Book 47 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
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अनेकान्त/३५
३६ रौद्रटस्य व्यघात् काव्यालडकारस्य निबन्धनम। प्रशस्ति श्लोक १४ । ४० सहस्रनामस्तवन सनिबन्ध च योर्हताम। प्रशस्ति श्लोक १४ ४१ योर्हन्महाभिषेका_विधि मोहतमोरविम ।
चक्रे नित्यमहोद द्योत स्नानशोस्त्र जिनेशिनाम ।।
प्रशस्ति श्लोक १६ ४२ रत्नत्रय विधानस्य पूजामाहात्म्य वर्णनम्।
रत्नत्रय विघानाख्य शास्त्र वितनुतेस्म य ।।
वही श्लोक १७४२ ४३ प कैलशचन्द्र शास्त्री अनागार धर्मामृत प्रस्तावना. पृ ४५ ४४ सनिबन्ध यश्च जिनयज्ञ कल्पमरीरचत् ।
सागार धर्म, प्रशस्ति १५ ४५ जैन साहित्य एव इतिहास ४६ त्रिषष्टि स्मृति शास्त्र यो निबन्धालकृत व्यधात्।
सागार धर्म, प्रशस्ति श्लोक १५ ४७ नलकच्छपुरे श्रीमन्नेमि चैत्यालये ऽसिधत् ।
ग्रन्थोऽय द्विनवद्वयेक विक्रमार्कसमाप्ययत
त्रिषष्ठिरमृति शास्त्र प्रशस्ति श्लोक १३ ४८ सोऽहमाशधरो रम्यामेता टीका व्यरीरचम् ।
धर्मामृतोक्त सागार धर्माष्टा ध्याय गोचराम्।। सागार धर्मामृत टीका प्रशस्ति श्लोक १८ नलकच्छपुरे श्री मन्नेमिचैत्यालये सिधत् । टीकेय भव्यकुमुद चन्द्रिकेत्युदिता बुधै ।। षण्णवद्वयेक सख्यान विक्रमाकसमात्यये। सपृम्यामसिते पौषे सिद्धेय नन्दताच्च चिरम् ।।
वही श्लोक २०-२१ ५० प्रमारवशवार्थीन्दु देवपाल नृपात्मजे।
श्री मज्जैसुगिदेवे ऽसिस्थेम्ना ऽवन्तीमवत्यलम् ।।
वही श्लोक १६ ५१ श्रीमान श्रेष्ठ समुद्धरस्य तनय श्री पौरपाटान्वय
व्योमेन्दु सुकृतेन नन्दतु मही चन्द्रो यदभ्यर्थनात् । चक्रे श्रावकधर्मदीपकमिम ग्रन्थ बुधाशाधरो ग्रन्थस्यास्य चलेखितो मलभिदे मेनादिम पुस्तक ।।
वही श्लोक २२ ५२ राजीमती विप्रलम्भ नाम नेमीश्वरानुगम् ।
व्यधत खण्डकाव्य य स्वय कृतनिबन्धनम्।।
अनागार धर्मामृत भव्यकुमुदचन्द्रिका टीका प्र श्लोक १२ ५३ आदेशात्पितुरध्यात्म रहस्य नाम यो व्यधात् ।
शास्त्र प्रसन्नगम्भीर प्रियमारब्धयोगिनाम् ।। वही श्लोक १३

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