Book Title: Anekant 1994 Book 47 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 22
________________ अनेकान्त/२१ अशोक के बाद कलिग मे खारवेल के समय मे जो प्राकृत प्रचलित थी वह मागधी नही, स्थानीय प्राकत थी। इसीलिए उदयगिरी व खण्डगिरी पर ब्राहमी लिपि मे उत्कीर्ण शिलालेखो की भाषा मागधी प्राकृत से भिन्न अपनी स्वय की विशेषताएँ लिए हुए अलग किन्तु उन्नत प्राकृत है। इस प्राकृत का नाम ओड्र मागधी है जो ई.पू. पहली सदी मे ओड्र, मगध, अग, बेग, कलिग, पौड़ आदि प्रदेशो मे प्रचलित थी। मेरे अनुमान से ओड्रमागधी का ही सस्कृतीकरण होकर अर्धमागधी नाम पड़ गया। अब अशोक के अथवा खारवेल के हाथीगुमफा के समय की कोई व्याकरण तो उपलब्ध है नही जिसके आधार पर से यह कहा जा सके कि शिलालेखो की भाषा कितनी शुद्ध है या कितनी अशुद्ध। दरअसल उनकी भाषा के सशोधन के प्रयत्न का अर्थ होगा १भविष्य मे लेखो की प्राचीनता पर सशय पैदा करना, तथा २ भाषा के वर्गीकरण व इतिहास के सकेतो को मिटा देना। समयसार का कौन सा पाठ वही पाठ है जो स्वय कुदकुद ने लिखा या बोला था, यह कहना तो असभव कार्य है, अभी तो विद्वान उनके समय के बारे मे भी एकमत नही है। हमे यह भी पता नही कि उस समय कोन सा व्याकरण प्रचलित था। इसके इलावा समयसार के करीब २० मुद्रित सस्करण निकालेगे। उनकी भाषा पर सर्वत्र नियत्रण रखना भी सभव नहीं है। इस विषय पर दोनो पक्ष विचार विमर्श कर चुके है और अब इस चर्चा को विराम देना ही हितकर है। इस पर लगे समय व साधनो का उपयोग जैन साहित्य के प्रचार-प्रसार मे करना अधिक श्रेयस्कर है। मान्यता है कि महाराज ऋषभ देव ने लिपि का आविष्कार किया और उसका नाम अपनी बेटी ब्राह्मी के नाम पर रखा । अत नि.सन्देह ब्राह्मी लिपि का प्रयोग कार्य सम्पादन मे लोग तब से ही करते आ रहे होगे फिर भी समस्त तीर्थकर, केवली सर्वज्ञ गणधर लिपि का प्रयोग न कर केवल स्मरण शक्ति पर आधारित श्रुत ही चलाते रहे। इस हद तक कि मूल दिगम्बर आगम का अधिकाश विच्छिन्न हो जाने दिया। इसके पीछे का रहस्य क्या है यह माने कि यह इसलिए किया गया कि यदि शास्त्र लिपिवद्ध हो जाते, तो चिन्तन के विकास की धारा अवरूद्ध हो जाती और कट्टरता पनपती जैसा कि आगम लिपिवद्ध होने के पश्चात् से आज तक होता आ रहा है। क्या हमारे पण्डित इस विषय पर ज्ञानाजन शलाका चलाने की कृपा करेगे। मिथ्या भाव अभावतें, जो प्रगटै निजभाव । सो जयवन्त रहो सदा, यह ही मोक्ष उपाय ।। इस भव के सब दुखनि के, कारण मिथ्याभाव । तिनकी सत्ता नाशकरि, प्रगटै मोक्ष उपाय।। यह विधि मिथ्या गहन करि, मलिन भयो निजभाव । ताको होत अभाव है, सहजरूप दरसाव ।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120