Book Title: Anekant 1994 Book 47 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 27
________________ अनेकान्त/२६ (ग) पं. आशाधर का समय : प. आशाधर का जन्मसमय विवादग्रस्त नहीं हैं। इसका कारण यह है कि उन्होने स्वयं अपनी रचनाओं की तिथियो का उल्लेख किया हैं। प्रशस्तिों का आधार : पं. आशाधर के तीन ग्रन्थो में उनके द्वारा लिखी गई प्रशस्ति उपलब्ध हैं। जिन यज्ञकल्प प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि यह ग्रन्थ वि. सं. १२८५ में समाप्त हुआ था। इसमें जिन ग्रन्थों का उल्लेख हुआ है वे निश्चित रूप से वि. सं. १२८५ में रचे गए थे। अनगार धर्मामृत टीका वि. स १३०० में पूरी हुई थी २१ । अत सिद्ध है कि इनका जन्म वि सं. १३०० के पहले अवश्य हुआ होगा। डा० नेमिचन्द्र शास्त्री का अनुमान है कि वि. सं. १३०० को उनकी आयु ६५-७० वर्ष रही होगी। इसीलिए इनका जन्म वि स. १२३०-३५ के लगभग हुआ होगा २२। दूसरी बात है कि वि स. १२४८-४६ मे वे माण्डलगढ से मालवा की धारा नगरी मे आए थे। उस समय उनकी आय २० वर्ष की थी। इससे सिद्ध होता है कि उनका जन्म वि. सं. १२२८-२६ में हुआ होगा २३। इस सम्बन्ध मे यह भी उल्लेखनीय है कि जब वे धारानगरी आए उस समय विन्ध्यवर्मा का राज्य था। विन्ध्यवर्मा का समय वि. स १२१७-१२३७ माना गया है २४। अतः सिद्ध है कि वि स. की तेरहवीं शताब्दी मे उनका जन्म हुआ होगा। प नाथूराम प्रेमी ने लिखा है कि प. आशाधर ३५ वर्षों तक नालछा मे रहे २५ । २० वर्ष की अवस्था मे उन्होंने व्याकरण का अध्ययन किया होगा और इसके बाद वे नालछा मे आकर साहित्य सृजन करने लगे होंगे। अतः पहली रचना उन्होने २० वर्ष की अवस्था मे की होगी। अतः ३५+३०=६५ वर्ष उनकी आयु सिद्ध होती है। 'जिनयज्ञ कल्प' वि. स १२८५ मे से ६५ घटाने पर उनका जन्म वि स १२३० सिद्ध होता है २६ । २. पं. आशाधर ने उल्लेख किया है कि वे अर्जन वर्मा देव के वि. स. १२६७ वि. स. १२७० ओर १२७२ के दानपात्र मिले हैं। इससे निष्कर्ष निकलता हे कि अर्जुनवर्मा देव वि. सं १२६५ मे अवश्य राजा हुए होगे। धारा मे प. आशाधर ने २५-२६ वर्ष की आयु में अध्ययन समाप्त किया होगा। अध्ययन समाप्त करके वे नालछा चले गए थे। अत. इनका जन्मकाल वि. सं. १२३०-१२२८ सिद्ध होता है। ३. वि० स० १३७६ मे रचित जिनेन्द्र कल्याणभ्युदय में कवि अम्भपार्य ने अन्य जैन आचार्यों के साथ प आशाधर का उल्लेख किया है २७। अत पं. आशाधर का जन्म विक्रम सम्वत् की १३वीं शती में हुआ होगा। मेरे इस कथन की पुष्टि प कैलाशचन्द्र शास्त्री, प नाथूराम प्रेमी. प जगन्मोहन लाल शास्त्री, शातिकुमार ठवली प्रभृति विद्वानो की मान्यता से होती हैं २८|

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