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अनेकान्त/२४ २. माता-पिता एवं वंश-: सागार धर्मामृत की प्रशस्ति मे उल्लेख मिलता है कि जैनधर्म श्रद्धालु भक्त सल्लक्षण प आशाधर के पिता थे और माता का नाम श्री रत्नी था ६ प आशाधर के पिता को राजाश्रय प्राप्त था। प. आशाधर जी का जन्म राजपूताने की प्रसिद्ध वैश्य जाति व्याघेरवाल या बघेरवाल जाति मे हुआ था १०। ३. पारिवारिक स्थिति-: प. आशाधर का विवाह हुआ था । अत्यधिक सुशील एव सुशिक्षित सरस्वती नामक महिला को प आशाधर की पत्नी होने का सौभाग्य मिला था। इनके छाहड नामक एक पुत्र था, जिसने अपने गुणो के द्वारा मालवा के राजा अर्जुनवर्मा को प्रसन्न किया था ११। पडित नाथूराम प्रेमी १२ सल्लक्षण के समान इनके बेटे छाहड को अर्जुनवर्मा देव ने कोई राज्यपद दिया होगा। क्यो कि "अक्सर राजकर्मचारियो के वशजो को एक के बाद एक राजकार्य मिलते रहते है।"
उपर्युक्त उल्लेख से सिद्ध होता है कि प आशाधर का कुल सुसस्कृत राजमान्य था। ४. भाई-बन्धु-: उपलब्ध प्रशस्ति मे यह उल्लेख नहीं मिलता है कि प. आशाधर के कोई बन्धु था। प प्रेमचन्द डोणगावकर न्यायतीर्थ के अनुसार इनके वाशाधर नामक बन्धु होने का दो जगह उल्लेख हुआ है वाशाधर के स १२३६ मे भट्टारक नरेन्द्र कीर्ति के उपदेश से काष्टासघ मे प्रवेश किया था १३। ५. शिक्षा एवं गुरू परम्परा-: प आशाधर की प्रारम्भिक शिक्षा कहाँ हुई इसका कही उल्लेख नही मिलता है। इनका बचपन माण्डल गढ मे बीता था। सभव है यही पर इन्हाने प्रारम्भिक शिक्षा पाई हो । वि स १२४६ मे जब आशाधर १६ वर्ष के हुए तो उस समय म्लेच्छ (मुसलमान) राजा शहाबुद्दीन द्वारा सपादलक्ष देश पर आक्रमण किया गया था और उसका राज्य भी हो गया था। इसके राज्य मे जेन यतियो पर उपद्रव होने लगा था। जेन धर्मानुसार आचरण करना कठिन हो गया था। जैन धर्म पर आघात होने और उसकी क्षति होने के कारण अपने जन्म स्थान छोडकर सपरिवार मालवा मण्डल की धारापुरी नामक नगरी मे आ गए थे। उस समय वहाँ विन्ध्य वर्मा राजा थे। यहीपर रह कर आशाधर ने वादिराज के शिष्य प धरसेन ओर इनके शिष्य प महावीर से जैनधर्म, न्याय ओर जैनेन्द्र व्याकरण पढा था १४।। अत प. महावीर ही इनके विद्यागुरू है। यहीं पर अनेक विषयो का गभीर स्वाध्याय कर जेन धर्म के वे मर्मज्ञ विद्वान बनकर पडित उपाधि से विभूषित हुए। ६. कर्मभूमि-: विद्या भूमि धारानगरी मे प आशाधर जैन एव जैनेतर समस्त साहित्य का अध्ययन कर बहुश्रुत हो गए थे। इसके पश्चात् धारा को छोडकर नालछा आ गए। आखिर क्यो? यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि उस समय 'धारानगरी काशी की तरह विद्या का केन्द्र थी। प नाथूराम प्रेमी १५ का कहना है कि उस नगरी के सभी राजा-भोजदेव, विन्धय वर्मा, अर्जन वर्मा केवल विद्वान ही न थे, बल्कि विद्वानो का सम्मान भी करते थे। परिजात मञ्जरी मे महा कविमदन ने लिखा है धारानगरी की