Book Title: Anekant 1976 Book 29 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 9
________________ ६, वर्ष २६, कि० १ अनेकान्त करवाया (पच्चमे च दानी वसे नन्दराज तिवसमत प्रोधा- और अष्टभागी कर दिया, अर्थात् उपज का माठवा भाग टितं तनसुलिय वाटापनादी नगरं पवेस यति)। खारवेल ने कर के रुप मे लिया जायेगा। क्या इससे यह स्पष्ट नही अपने शासन के पाठवें वर्ष में राजगह पर प्राक्रमण किया है कि प्रियदर्शी राजा अशोक मौर्य नही था, नही तो स्तूप पौर यवनराज दिमित को मथुरा भगा दिया । अगली बार बनवाने का उल्लेख अवश्य करता। अपने शासन के १२वें वर्ष मे खारवेल ने पुनः मगध पर . प्रियदर्शी के अभिलेखो मे कही भी कौटिल्य या उसके प्राक्रमण किया और राजा बहस्पति मित्र को अपने चरणो अर्थशास्त्र का कोई उल्लेख नही मिलता । अभिलेखों मे में गिरने को बाध्य किया । खारवेल मगध से काफी सामान रज्जुक, प्रादेशिक तथा युक्त अधिकारियों का उल्लेख है। लट कर ले गया । इसमें भगवान् को वह मूर्ति भी थी जो तृतीय लेख मे स्पष्ट कहा गया है कि मेरे विजित राज्य में नन्द राजा कलिंग से छीनकर ले गया था। इस प्रशस्ति मे युत, रज्जुक, प्रादेशिक प्रति पाच वर्ष पर दौरे पर निकला मौर्य संवत १६५ का उल्लेख भी मिलता है : मुरिय काल करे । प्रियदर्शी ने इस प्रकार अपने शामको मे धर्मानशामन वोछिनं प्रगम निकंतरिय उपादायाति' । इस प्रशस्ति से स्पष्ट का कार्य भी लिया था। धर्भ महामात्रो की नियुक्ति प्रियहै कि कलिग देश पर किसी नन्द राजा ने अाक्रमण किया दर्शीने अपने गज्याभिषेक के तेरहवे वर्ष में की थी। इसके था, वह 'जिन भगवान की मूर्ति उठा ले गया और प्रजा के अतिरिक्त, योधर्म मात्र, और ब्रजभमिक भी धर्म-विजय सुख के लिए नहर भी ग्व दवायी थी। इतिहाग में कलिग पर के लिए नियुक्त किए गए थे । इनका उल्लेख अर्थशास्त्र में प्रियदर्शी के प्राक्रमण का ज्ञान तो उसके तेरहवें शिलालेख नहीं है। बी.गी जो वाल्यूम २ मे पीथ ने एक विस्तृत लेख से होता है । यह युद्ध प्रियदर्शी के अभिषक के पाठवे वर्ष में लिखकर अर्थशास्त्र पीर प्रियदर्शी के अभिलेखों की विमहुप्रा था। इस युद्ध में ही उसका चित्त अनुतप्त हो गया गतियाँ दर्शायी है । द्रदामा के जूनागढ़ अभिलेख से स्पष्ट और उगने युद्ध-विजय के स्थान में धर्म-विजय प्रारम्भ की। है कि चन्द्रगुप्त मौर्य तथा अशोक मौर्य के काल में यदि यह अशोक मौर्य वश का था, तो बोद्ध ग्रंथों में प्रान्तीय शासक का 'प्रादेशिकः' न कहकर 'राष्ट्रिय' कहा उसके इस प्राक्रमण का उल्लेख क्यों नही है। दिव्यावदान जाता था। पुप्यगुप्त तथा नुषाप्प चन्द्रगुप्त मौर्य तथा में अशोक के बुद्ध-जीवन से सम्बन्धित स्थलो की यात्रा का अशोक मौर्य के काल में सौराष्ट्र राष्ट्रिय थे । प्रियदर्शी वर्णन मिलता है। यह यात्रा उसने उपगुप्त स्थविर के को मोर का मास पसद था। सरक्षित पक्षियो की सूची में साथ की थी। ह्वेनसाग के अनुसार, कपिलवस्तु, सारनाथ मोर का नाम नही दिया हुआ है। परिशिष्ट पर्व (५।२२६) भादि स्थलो पर अशोक ने स्तूप बनवाए थे (बील पृ० तथा उत्तराध्ययन-सूत्र पर सुखवीधा टीका से स्पष्ट है कि २४) । फाहियान ने तथा बुद्ध-चरित में अश्वघोष ने मौर्य लोग मयर पोषक थे और मोशे के देश से पाए थे। चौरासी सहस्त्र स्तूप बनवाने का उल्लेख किया है। यदि प्रियदर्शी की पत्नी कारुवाकी और पुत्र नीवर का मम्पूर्ण सहस्त्र का अर्थ 'लगभग' भी हे तो कम से कम चौरासी बौद्ध साहित्य में उल्लेख नही है । मभिलेखो में महेन्द्र तथा स्तूप तो प्रशोक मौर्य ने बनवाए ही थे, फिर उनका अभि- सघमित्रा का कोई सकेत नही मिलता। इसी प्रकार, तिष्य लेखो मे कोई उल्लेख क्यो नही है। निगली सागर स्तम्भ की अध्यक्षता में हई तृतीय बौद्ध संगीति तथा विदेशो मे लेख से यह स्पष्ट है कि प्रियदर्शी ने राज्याभिषेक के १४ भेजे जाने वाले प्रचारको का ही कोई उल्लेख है । महावंश वर्ष बाद कनकमुनि स्तूप को दुगना करवाया था । २० और दीपवश मे इन प्रचारको की विस्तृत सूची मिलती वर्ष बाद उसने इस स्थान पर एक प्रस्तर स्तम्भ बनवाया है (महा. १२६१-८, दीप० ८।१-११) । जिस पर लेख खुदा हुमा है। प्राघुनिक रुम्मिन देई ही द्वितीय अभिलेख मे लिखा है कि अशोक ने अपने प्राचीन लुम्बिनी वन है जहा पर गौतम बुद्ध का जन्म हुमा विजित प्रदेश में ही नहीं, अपितु सीमावर्ती राज्यो मे भी था। प्रियदर्शी ने 'बलि' सज्ञक धर्मकर हटा दिया और मनुष्यों तथा पशुप्रो की चिकित्सा का प्रबन्ध करवाया था। लुम्बिनी ग्राम को उबलिक (जिससे बलि न ली जाए) पौषध, फल तथा फूलों के वृक्ष लगवाए थे। सीमान्त

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